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________________ तरंगवती नहीं, मैं तुम्हें मृत्यु से बचाऊँगा। मेरी संपूर्ण शक्ति लगाकर, सभी उपाय आजमाकर • मेरे प्राणों की बाजी लगाकर भी मैं तुम्हारे प्राणों की रक्षा करूंगा।' उसके मुख से निकले ये वचन सुनकर मृत्यु का संत्रास हमारा दूर हुऊ और हमें बहुत शांति हुई । हम दोनो का जीवन क्षेमकुशल रखने का भाव धारण कर हमने जिनवरों को वंदन किया, फिर प्रत्याख्यान का पारना किया . इतने में वह चोर पत्तों की पत्तल में मांस ले आया । 'यह तुम्हारे लिा भोजन है, इसे खा लो, हमें बहुत दूर जाना है उस चोरने कहा । 'यह हमारे कार में नहीं आ सकता'-यह कहकर हमने वह न लिया, किन्तु हमने ऊंची अंजलि कर केवल पानी पिया । निशा का प्रारंभ उन क्षणों में पदभ्रष्ट राजा जैसा प्रतापनष्ट सूर्य गगन पार कर गया । दूस दिन पुनः उदित होने के लिए वह अस्त हो गया। दिन के अस्त होते ही वृक्ष के पत्ते मुरझाये, पंछी अपने घोंसलों में लौटे और कलख करने लगे । हे गृहस्वामिनी, मौत के भय से हम कांपते थे और वह अतिशय लम्बा दिन हमारा रोने में ही बीता। जीवलोक के अवलंबन जैसी तब घुग्घुप्रिय, गगनतल सुहाती घनघोर कालरात्रि उतर आई। थोडी देर बाद वारिधिकावर्धनविकासक, गतिमान अंबरतिलक और कंदकुसुम जैसा श्वेत चंद्र उदित हुआ । बंधनमुक्ति एवं चोरपल्ली में से पलायन ___चोरपल्ली में हास्य का शोरगुल, पुरजोश बजते ढोल का निनाद, गीत का शब्द और मदमत्त हो कर नाचते चोरों की रंगरली छा गई। . उस समय सब लोग जब भोजन में व्यस्त थे तब उस चोरने मेरे प्रियतम को बंधन से मुक्त किया और कहा, 'तुम डरो नहीं । मैं तुमको भगाने की अब कोशिश करता हूँ।' ..इसके बाद किसी को ज्ञात न हो इस प्रकार वह हमको पल्लीपति के का के विजयद्वार में से होकर ले चला । वह लम्बा था इसलिए निकलने में हमको । बहुत समय लगा।
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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