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________________ ७६ तरंगवती में इस युगल का वध करना है। इसलिए ये पलायन न हो जायें इस प्रकार तुम उनकी सावधानी से निगरानी रखना ।' ____ यह सुनकर तुरंत ही मेरा हृदय मृत्युभय एवं उत्तरोत्तर बढ़ते शोक मिश्रिण से भर गया। पद्मदेव बंधन में तत्पश्चात् अपने स्वामी की आज्ञा हाथ जोडकर स्वीकार करके वह चोरयुवक हमको अपने निवासस्थान पर ले गया। हम बेगुनाह के शत्रु बने उसने मेरे प्रियतम के हाथ को जोर से मोडकर उसके सभी अंग बाँध लिये । प्रियजन की इस आपत्ति को देख मेरा हृदय भभक उठा । उस दुःख से मैं इस प्रकार विलाप करती हुई भूमि पर गिरी जैसे नागयुवान गरुड से ग्रसने पर नागयुवती गिरती है। बिखरे केशकलाप एवं आँसू की बाढ से अवरुद्ध नयनों सहित मैं उसके बांधने में बाधा डालती हुई प्रियतम के सीने से लिपट पड़ी। 'अनार्य, तुम उसके बदले मुझे बांधो । जैसे मुख्य हस्तिनी के कारण पुरुषहस्ती बंधन में पड़ता है वैसे मेरे कारण ही बंधन में यह पड़ा है।' . ___आलिंगन देने में समर्थ, प्रियतम की सुन्दर, घुटनों तक लंबी भुजाएँ एकदूसरी से सटाकर उसकी पीठ के पीछे बाँध दी । प्रियतम के बंधन खोलने का प्रयास करती देखकर उस चोर ने मुझे लात लगाई एवं धमकाकर एक ओर उठा फेंकी। बंधन की स्थिति में मेरा प्रियतम जो धैर्य से विषादमुक्त रहा था, वह अब मुझ पर प्रहार एवं मेरा अपमान होने से अत्यंत दुःखी हुआ। रोता हुआ वह मुझसे कहने लगा, 'आह प्रिये ! मेरे कारण तुमको पहले कभी न सहे ऐसे मृत्यु से भी अधिक कष्टदायक अपमान सहना पड़ा । मैंने अपने मातापिता, बंधुवर्ग के लिए या स्वयं के लिए इतना शोक नहीं किया, जितना नववधू की स्थिति में तुम्हारी दुर्दशा देख मुझे हो रहा है। इस प्रकार शोक व्यक्त करते प्रियतम को उस चोरने जैसे किसी गजराज को खूटे से बाँध दे उसी प्रकार पीठ की तरफ बाँध दिया। . इस प्रकार बंधन से उसे वश करके वह निर्दय चोर बरामदे में गया और
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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