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________________ तरंगवती ४५ यह युवान व्याध भी वैशाखस्थान में स्थित एवं हाथी को पाने के लिए कान तक खींचे धनुष्यधारी बाण बराबर रेखांकित किया है । यहाँ तो देखो धान की बाली के सुंदर चमकीले तंतु जैसा केसरी शरीरवाला वह भोला पंछी शिकारी के तीर से कमर में बींध गया दिखाया है । ____ और यहाँ पतिस्मरण से व्याकुल एवं करुण स्थिति में घिर गई शालि की बाली जैसी देहदीप्ति से आकर्षक चक्रवाकी है। उसे उल्का की भाँति देह धरती पर गिराती आलेखित की है। शिकारीने मर चुके इस चक्रवाक को नदीतट पर अग्निसंस्कार से देखो नामशेष कर दिया । - और इधर शोकाग्नि से जल रही, करुण दशां में डूबी चक्रवाकी पति के मार्ग का अनुसरण कर आग में प्रवेश करती अंकित है। कितना मन लुभावना चित्र है ! शरदपूर्णिमा की सभी दर्शनीय बातों का यह सर्वस्व है। परन्तु इस चित्र का उद्भव कैसे हुआ होगा यह जानना कठिन तरुण मूच्छित : पूर्वभव स्मरण कुतूहलवश मित्रों को दिखाते दिखाते यहाँ तक के चित्र में अंकित चरित्र को देख वह तरुण एकाएक मूर्छित हो गया। अति दृढ बंधन से छूटकर नीचे गिरते इन्द्रध्वज की भाँति वह अल्प प्रेक्षकों के कारण किंचित् सूने बने धरतीतल पर धमाके के साथ गिर पड़ा। उसके मित्रलोग नजदीक ही थे फिर भी सबका ध्यान चित्रकौशल देखने में लगा होने के कारण उन्हें उसके गिरने का पता तुरंत नहीं चला। निश्चेष्ट दशा में उसे गारे-मिट्टी की यक्षमूर्ति की भाँति उन्होंने उठाया और हवादार स्थान में एक ओर रखा । चित्रपट्ट को देखने के कारण वह गिर पड़ा ऐसा वे समझ गये । मैं भी उसके गिरजाने का कारण क्या है यह जानने के लिए वहाँ उपस्थित हो गई। मेरा हृदय भी एकाएक संतोषभाव का अनुभव करके प्रसन्न हुआ । लाभालाभ एवं शुभाशुभ की प्राप्ति इसका निमित्त होता है। मैं सोचने लगी, "यदि
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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