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________________ तरंगवती ३३ कर्तव्य में संपूर्ण सावधान रहने की सूचना देकर वह निकली । परिवार के कुछ लोगों एवं अनुभवी परिचारकों को साथ लेकर वाहन में बैठकर अम्मा मेरे साथ नगर में लौटीं। मैं वासभवन में गद्दे-तकिया से सज्ज शय्या में बैठ गई । गले का मोतियों का हार, माला,कान का कुंडलयुगल, कटिमेखला ये सब उतारकर मैंने दासी को सौंप दिया। तब अम्माने मेरे पिताजी से कहा, 'तरंगवती के शरीर में टूटन हो रही है, सिर में दर्द हो रहा है। इसलिए उद्यान में अधिक समय ठहरना उसे रास न आया । जिसके वास्ते में उद्यान गई, वह सप्तपर्ण वृक्ष सरोवर के समीप में ही खडा एवं पुष्पाच्छदित मैंने देखा । सब स्त्रियों को उद्यान में रमण एवं भ्रमण करने में कोई बाधा न पहुँचे इस हेतु मैंने अपने लौट आने का सच्चा कारण उनको नहीं बताया।' यह बात सुनकर मुझसे पुत्रों से भी अधिक स्नेहगाँठ में बंधे पिताजी बहुत व्याकुल एवं दुःखी हुए। वैद्यराज का आगमन अम्मा की राय से वैद्य बुलाया गया । वह विवेकबुद्धिसंपन्न एवं अपनी विद्याप्रवीणता के लिए नगर में मशहूर था, उत्तम कुलजात, स्वभाव से गंभीर एवं चारित्र्य का धनी था, शास्त्रज्ञ था और उसका हाथ, शुभ, कल्याणप्रद एवं मृदु था। ___ सब प्रकार की व्याधियों के लक्षण, निदान, उपचार एवं तत्संबंधित औषधी की प्रयोगविधियों में कुशल वह वैद्य आया। आसन पर आराम से बैठने के बाद वह मुझसे पूछताछ करने लगा, 'मुझे यह कहो कि अधिक कष्ट तुमको किस बात का है - ज्वर का या सिरदर्द का ? तुम विश्वास करना, इसी पल तुम्हारा दर्द मैं दूर कर देता हूँ। तुमने गत दिन भोजन में क्या-क्या खाया था? तुमने जो खाया वह अच्छी तरह हजम हुआ था ? तुम्हारी रात कैसी गुजरी ? आँखें दबोच दे ऐसी नींद भली-भाँति आई थी? तब सारसिकाने शाम को जिन जिन चीजों का मैने आहार किया था और पूर्वजन्मस्मरण को छोड वनभोजन के लिए हम गये थे यह बात बताई। इस पूछताछ एवं मुझे देखने-परसने के बाद वस्तुस्थिति का मर्म पाकर वैद्य कहने लगा, "इस
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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