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________________ सदयवत्स-कथानक भूमिका प्रस्तुत संपादन हर्षवर्धनगणि कृत "सदकवत्स चरित्र सर्व प्रथम इ.सन्. १८५३ में हीसलाल हंसराज की ओर से जामनगर (सौराष्ट्र, मुजासत) से प्रकाशित किया गया था। हीरालालजी ने कौनसी हस्तप्रति के आधार पर इसका पाठ दिया है उसके बारे में कुछ बताया नहीं है। और आपने संपादन के अंत में उन्होंने स्पष्ट रूपा से कहा है कि मूल कृति के पाठ में उन्होंने अपनी इच्छा से फेरबदल किया है। (“आ मंथनी मूलपाया अस्तव्यस्त होबाथी तेम्पा बनतो सुधारो की ते श्री जामनगर निकासी पंडित श्रावक हीसलाला हंससके स्कपरता श्रेषमाटे पोलाना श्री जैन भास्करोदय छापाखानाम्नां छापी प्रसिद्ध कर्षो छ।' पृष्ट १७६) इससे स्पष्ट होता है कि खास करके जैत पाठकों के लिये दान की महिमा करने वाली एक कथा प्रस्तुत करने के लक्ष्य से यह कृति प्रकाशित की गई थी। इसके पाठ की प्रामाणिकता. नहीं मानी जा सकती। बाद में यह हीसलाला हंसराज का “सदयवत्सचरित्र के पाठ का आधार लेकर पं. मतिसागर ने १९३२ में 'सदैयवत्सकुमारचरित्रम्' नामक एक कृति प्रकाशित की है। यह भी हर्षवर्धनगणि का हीरालाल हंसराज प्रकाशित 'सदयवत्सचरित्र' को आधार लेकर नये ढंग से कथा लिखी गई है। इससे स्पष्ट होता है कि हर्षवर्धन मणि की रचना का मूल पाठ अब तक प्रमाणभूत रूप में प्रकाशित नही हुआ है। यहाँ हमने जो उस कृति का पाठ संपादित करके दिया है वह उसका मूल पाठ है। यह जेसलमेर के आचार्य गच्छ के हस्तप्रतभंडार की एक प्रतकी प्रतिलिपि है। प्रतिलिपि सद्गत जिनविजयजी मुनि की निगरानी में विजयचन्द्र ने तैयार की थी। हस्तप्रत का समय वि.सं. १५२८ है । उसमें ८वां पत्र नहीं है। अमृतभाई भोजक ने हमें यह कापी सुलभ कराई । यह प्रति प्राचीन होने से हमने संपादित की है। वार्डर के Indian Kavya Literature Vol. 6, (1992) P. 123. में सदयवत्स-कथा के बारे में कहा गया है -
SR No.002290
Book TitleSadyavatsa Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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