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________________ भूमिका श्री सिद्धचक्र - नवपद - स्वरूप दर्शन जैनधर्मदिवाकर परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी महाराज सा. ने मानव के प्राध्यात्मिक और नैतिक उत्थान के लिए अनेक सद्ग्रंथों की रचना की है। आधुनिक युग में स्वार्थ और छल-कपट से आक्रान्त मनुष्य को शान्ति चाहिए । शान्ति की खोज में वह अन्तरिक्ष में उड़ रहा है, सागर में गोते लगा रहा है, आकाश में सैर कर रहा है, देश-विदेश में भ्रमण कर रहा है, मनोरंजन के अनेक साधनों का प्रयोग कर रहा है, परन्तु शान्ति आकाश-कुसुम के समान दुर्लभ है। शान्ति कोलाहल से दूर अन्तरलोक में निवास करती है, उसे प्राप्त करने का उपाय है संत कबीर के शब्दों में--'घूघट के पट खोलरी, तोए पिया मिलेंगे।' घूघट के पट खोलने का अर्थ है-अज्ञान का पर्दा हटा देना। अज्ञान को दूर करने के लिए सर्वज्ञ भगवान की स्याद्वाद-वारणी सर्वश्रेष्ठ है। जिनवर वाणी के उद्घोषक प्राचार्यदेव हैं। पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्री सुशील सूरीश्वरजी म. सा० ने 'श्री सिद्धचक्र-नवपद-स्वरूप दर्शन' पुस्तक में सिद्धचक्र-नवपद का सरल शैली में निरूपण किया है, इससे सामान्य जन और विदवान दोनों का रंजन होता है। पू. आचार्य श्री का रचना-कर्म लोकमंगल-भावना से अभिषिक्त है, इसलिए इनकी भाषा-शैली सरोवर में खिले कमल के समान मनोहारी है। इस पुस्तक का उद्देश्य सिद्धचक्र-नवपद का स्वरूप दर्शाना है। किसी भी पाराधना-अनुष्ठान का भाव-बोध हो जाने पर, उसमें जो
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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