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________________ १८४ . जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप में प्रकारान्तर से विवेक, ज्ञान व विरति से मोक्ष प्राप्ति होती है, यह समवेत रूप से न कह कर विभिन्न स्थलों पर कहा गया है। किंतु विवेक से ज्ञान और ज्ञान प्राप्त होने पर विरति होती है यह तो स्पष्टतया दिखाई देता है। विवेक को ज्ञान नहीं कह सकते क्योंकि एक तो वह विवेक के होने के बाद होता है तथा दूसरा विवेक के साथ सांख्यसूत्र में ज्ञान का कथन न करके स्वतंत्र रूप से ज्ञान का कथन किया गया है अतः हम कह सकते हैं कि विवेक ज्ञान से तो भिन्न है पर कहीं. कहीं सूत्रकार ने विवेक में ज्ञान का अन्तर्भाव भी कर लिया है । . . मोक्ष की प्राप्ति कर्मों के क्षय होने पर होती है यह जैन दर्शन स्वीकार करता है तो सौख्य भी त्रिविध दुःखों की अत्यंत निवृत्ति मोक्ष है यह मान्य करता है ।' दुःख को कर्म का ही रूप मान सकते हैं । सांख्यमतानुसार पुरुष जीवन में मुक्ति प्राप्त कर लेता है और वह जीवन्मुक्त कह लाता है। यह जीवनमुक्त अवस्था जैन-मतानुसार तेरहवें गुणस्थानवर्तीसयोगी केवली की अवस्था है। विवेक की उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? उसका भी सांख्यसूत्र में वर्णन किया है कि-राजपुत्र के समान तत्त्वोपदेश से विवेक होता है । इस पर दृष्टांत दिया है कि राजपुत्र को किसी कारणवशात् राजा ने निकाल दिया और चाण्डाल ने उसका पालन-पोषण किया तो वह अपने को चाण्डालपुत्र समझने लगा। पर जब किसी ने बताया कि तू चाण्डालपुत्र नहीं, राजपुत्र है तो उसने अपना यथार्थ स्वरूप जाना । इसी प्रकार तत्त्व का उपदेश सुनने से विवेक की प्राप्ति होती है। विवेक की उत्पत्ति के विषय में पुनः कहते हैं कि-पिशाच के समान अन्य को उपदेश होने पर भी विवेक होता है ।' पिशाच के १. अथ विविध दुःखात्यंतनिवृत्तिरत्यन्त पुरुषार्थः । सांख्यसूत्र, १-१ ॥ २. जीवन्मुक्तश्च । वही, ३-७८ ॥ ३. राजपुत्रवत् तत्वोपदेशात् । वही, ४-१ ॥ ४. सांख्यदर्शन, संपादक श्रीराम शर्मा, पृ० १६७ ।। ५. पिशाचवदन्यार्थीपदेशेऽपि । सांख्यनत्र, ४-२ ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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