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________________ अध्याय २. sho sho. ___ कहा जाता है कि आ० हरिभद्रसूरि ने १४४४ ग्रन्थों की रचना की थी। अब हम इनकी कृतियों में सम्यक्त्व विषय के विचार व विकास का अवलोकन करेंगेसम्यक्त्वसप्तति . इस ग्रन्थ में हरिभद्रसूरि ने ७० गाथा में सम्यत्स्व की विशुद्धि निमित्त सडसठ भेदों की व्याख्या की है। साथ ही सम्यक्त्व का स्वरूप " तत्त्वार्थ पर श्रद्धा" ही बताया. है ।' सम्यक्त्व का अधिकारी कौन है उसका विवेचन करते हुए कहा-मिथ्यात्व का जिसने त्याग किया है तथा जो जिन, चैत्य, साधु की पूजा से युक्त है और आठ प्रकार के आचार के भेदों को जो पालता है उसे सम्यक्त्व होता है। . इसके पश्चात् सम्यक्त्व की विशुद्धि निमित्तक सडसठ भेदों का कथन करते हुए कहा___चार श्रद्धा, तीन लिंग, दस विनय, तीन शुद्धि, पंच दूषण, अष्ट प्रभावक, पंच भूषण, पंच लक्षण, छः यतना, छः आगार, छः भावना और छः स्थान इन सडसठ भेदों से विशुद्ध सम्यक्त्व होता है।' .. ".संबोध प्रकरण" पंचाशक ग्रन्थ में भी श्रीमद् हरिभद्रसूरि ने . इन्हीं सडसठ भेदों की प्ररूपणा की है।' . अब आगे ग्रन्थकार इन सडसठ भेदों का विवेचन करते हैंचार प्रकार की श्रद्धा-१. परमार्थ संस्तव, २. परमार्थयुक्त मुनि की १.दसणमिह सम्मत्तं, तं पुण तत्तत्थसदहणरुवं । सम्यक्त्वसप्तति गा. २॥ २. अवउझियमिच्छत्तो, जिणचेइयसाहुपूअणुज्जुत्तो। आयारमट्ठभेअं, जो पालइ तस्त सम्मत्तं ॥ वही, गाथा ३ ॥ ३. चउसदहणतिलिंगं, दसविणय तिसुद्धिपंचगयदोस । अट्ठपभावणभूसण-लक्खण पंच विह संजुत्तं ।। छविह जयणागारं छभावणाभावियंच छट्ठाणं । इह सत्तसट्ठि लक्खण भेयविसुद्धं च सम्मत्तं ।। वही, गाथा ५-६ ।। ४. संबोध प्रकरण सम्यक्वाधिकार, गाथा ५९-६०, पृ० ३४ ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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