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________________ मन्त्रकल्प संग्रह अडीया छाणानी राष वार २१ अभिमन्त्रीइ स्त्री पांहि अंचल चम्पावीइ राषसिउ यदि तस्या दक्षिणस्तदात्मीयवामांचलोपरि रक्षा ध्रीयते यदि वामस्तस्यास्तदात्मीयदक्षिणः पीडायाति । ॐकारिणी प्रसव २ श्री ठः ठः स्वाहा वार २१ अभिमन्त्री धिसि""सि सीरामण दीजि रविवारि अभिमंत्रीइ स्तन्यमायात्ति निश्चयेन कनकबीजान्येककवद्वया ५० दिनानि याक्तदा वें कैकहान्या ५० दिनेः सर्वाणि मुच्यते एतावता अलर्कश्वाशृगालविष याति वंध्याकर्कोटिका डंके बध्यते च उत्तगतोरण सर्पकुण्डली . गोरी ढालइ महादेव नाहइ कसण ढली जाइ वलि छीनु मुसल छीनु काषबिलाइ छीनु ऊमग छीनु पाठउ छीनु भामर छीनु कालाहोडी छीनुगड छीनुगूबड छोनु चउरासीसु दोष छीनु अठोत्तर सु व्याधि छीनि २ भीन २ महादेवमंत्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रहस्तेन छोनि २ पलिकया उज्यते ।।१५॥ कुकम गोरोचन कणबरीमणसिल श्वेतार्कमूलानि समभागेन संमील्य गुटिकां कृत्वा में यात वेलायां १०८ वर्द्ध मानविद्यया अभिमन्यते तिलकेकृते राजवश्यं ।। ऋतुमत स्त्रीडूचकसिचय कद्यल करी काथकादि मांहि घाती गुटिका करी पतिभक्षणे पतिवश्यं ।। गोरोचन टांक २ पोटली बांधी शतूसमये त्रिदिनी याव"प्पते नीतिकालं विमुच्य तदनुऽन्यवस्त्र णं बध्वा वासादिमध्ये क्षिप्त्वा लपन श्रीमध्येदीयते पतिवश्यं । श्वेतदुर्वा वचाकुष्टं मांसी त गरमेवंच ऐष कापालिको योगो नरनारी वशंकर १ स्त्रीणां सिरसिदातव्यं पुरुषाणा तु पानतः षट् पदी दंताभ्यां गृहीत्वा मस्तकोपरि उच्छाल्य स्मशानघटसकपाधरी ठिक्वरिकाचूर्णमध्येो प्पास्तोका ऊपराठीठिक्वारिका मर्दयित्वा छटा क्षिप्पते विप्रयोगः परस्परं ।।१३।। ॐनमो अरि हताणं ॐनमो सिद्धाणं ॐनमो अणंत सिद्धाणं सिद्धयोगधराणं सब्वेसि विद्याहरपुन्नाष कयंकि लि इमं विद्याहिरायं पउजामि इमा मि विद्यासिद्यउ परेकालबालकालि पुसखरेउ आक्तो चोवडिस्वाहाः वापीपानीयहारिदण्डसत्कर्करसप्तकं रविदिने गृहीत्वा अनेन मन्त्रेण १०८ अभिमन्व्य कयाणकोपरी
SR No.002243
Book TitleMantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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