SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - श्री देलुल्लापुरस्तोत्रादि-मंत्रविधिसहितानि [१६७ वझि स्वाहा मोरीविद्या प्रकासइ तेहं कुलि हरस नही वार २१ गुणयेत्त्रिसंध्यं हरिषा यांति ॥ ॐनमो ब्रह्माकुपूतकाटंत कूटंत तेखानु हनुमंत लंक छौडि दोलंक जाइ माणस छोडि भंडीपा षाइ एनं मंत्र भणित्वा उदरोपरि वींगणं मुक्ता सप्तवारं चीर्यते, पश्चाद्यथेष्टं चीर्यते बडहलं यांति शेष गुरुगम्यं गोह्लामूलं संघृष्य मध्ये दीयते लेपश्च कंठमाला याति । ॐनमो जती विचित्तो समरंती सुहसंतिकरीहउई रोग मूल सवि टालंति तिहुअणमेहल सुनि करती झंझा जाइ तरकणि नामेण न जाइ तु विसविसपण चीरिकायामयं मन्त्री लिखित्वा गले बन्धनीयः कण्ठमाला याति । आमलां काचां आणी कलिया काढीइ छायाइं सूकवीइ वाटीइ वाटीइ वालीइ सूक्ष्म कोजीइ आगरणनां छाणानी राषनाही सूक्ष्म कीजीइ सममात्रा कीजइ बिह्नइ एकठां कीजइ गजमूत्रं भावना २१ तदभावे मानवमूत्रं पश्चात्त नौषधेन नासो दीयते कुशरोगो याति ॥११।। .. "गवरिमंति घणपीड टलइ कारणि अभिमंतिय ... घसि तक्व पय पउर हवि रविदिण भोयंतिअ । कनकबीय मुय किन्नसुणिह विसवेग विणासइ भन्न महादेवमंती जंति थणवाउ पणासई ।।१२।।" 'कणयरमणिसल अक्कमूल कुंकुम गोरोग्रण, . गोलि निम्मिन तिलय जोनजण माणस मोहण । धम्मिअनारिअसुईवत्थ कजलसंजउ, गईपइवसजहविहुठ दुठचित्तकाचालि पउगई ।।१३।।" चोवडि मंत्तीय वावि सत्तककुरीचलह विकय होसउ दोलकनदकुठि लिहिउरण य चालय । चच्चरि धलिभिमति उण जह सामणि मन्तिणं स्वगापहारवि आर जन्ति तह तुहजिण नामिण ॥१४॥ ॐनमो गवरीकांत इक पास महादेव वणइ दोरडा जोए गण्ठिचलि पोड महादेव करइ कलक लीजाए गन्ठि अंवलि गली
SR No.002243
Book TitleMantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy