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________________ की भाँति ही शरीर को स्नानादि कराते हैं। फिर एक रत्न की शिबिका तैयार करते हैं। इन्द्र शरीर को उठाकर शिबिका में रखता है। इन्द्र ही उसको उठाता है। शिबिका के आगे-आगे कई देवता धूपदानियाँ लेकर चलते हैं। कई शिबिका पर पुष्प उछालते हैं, कई उन पुष्पों को उठाते हैं। कई आगे देवदुष्य वस्त्रों के तोरण बनाते हैं, कई यक्षकर्दम का (केशर कंकू का) छिड़काव करते हैं, इस तरह शिबिका चिता के पास पहुँचती है। इन्द्र प्रभु के शरीर कों चिता में रखता है। अग्निकुमार देवता चिता में अग्नि लगाता है। वायुकुमार देवता वायु चलाता है इससे चारों तरफ अग्नि फैलकर जलने लगती है। चिता में देवता बहुत सा कपूर और घड़े भर २ के घी डालते हैं जब अस्थि के सिवा सब धातु नष्ट हो जाती हैं। तब मेघकुमार क्षीर समुद्र का जल वरसाकर चिता ठंडी करता है। फिर सौधर्मेन्द्र ऊपर की दाहिनी डाढ़ लेता है, चमरेन्द्र नीचे की दाहिनी डाढ़ लेता है, ईशानेन्द्र ऊपर की बाई डाढ़ ग्रहण करता है और बलीन्द्र नीचे की बाई अढ लेता है। अन्यान्य देव भी अस्थियाँ लेते हैं। .. फिर वे जहाँ प्रभु का अग्निसंस्कार होता है उस स्थान पर तीन समाधियाँ बनाते हैं और तब सब अपने-अपने स्थान पर चले जाते हैं। १० अच्छेरा - १. ऋषभदेव तीर्थ में उत्कृष्टी अवगाहना वाले १०८ सिद्ध २. सुविधिनाथ - असंयतीपूजा ३. शीतलनाथ - युगलियां नरक में गये ४. मल्लिनाथ - स्त्री तीर्थंकर नेमिनाथ तीर्थ में - कृष्ण वासुदेव एवं कपिल वासुदेव का शंख मिलन। महावीर प्रभु - गर्भपरावर्त, केवलज्ञान के बाद उपसर्ग, चमरोत्पात, देशना निष्फल, १० चंद्र सूर्य का मूल विमान से आना। : पंच कल्याणक : 322 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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