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________________ उसको मजबूर किया। उसने क्रुद्ध होकर हमें एक भयंकर वन में ले जाकर फेंक दिया। हमारी हड्डियां पसलियां चूर-चूर हो गयी। अंत समय जानकर हम दोनों ने अनशन व्रत लेकर नवकार मंत्र का जाप आरंभ कर दिया। वहां से मरकर मैं सौधर्म देवलोक में नवमिका नामक देवी हुई। तूं भी वहां से मरकर कुबेर लोकपाल की मुख्य देवी हुई। वहां से च्यवकर तूं बलभद्र की पुत्री सुमति हुई है। देवलोक में रहते समय हमारे बीच में यह शर्त हुई थी कि जो पहले पृथ्वी पर आवे दूसरी अर्हत धर्म की भक्ति की याद दिलावे। इसलिए मैं आज यहां आयी हूं। अब तूं संसार में न फंस और जीवन को सार्थक बनाने के लिए दीक्षा ग्रहण कर।' . __इतना कहकर देवी मंडप को आलोकित करती हुई आकाश मार्ग की ओर चली गयी। उधर वह गयी और इधर सुमति पूर्व जन्म के वृत्तांत की याद आते ही मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी। कुछ सेवा शुश्रूषा के बाद जब उसे चेत आया तो वह सभाजनों से हाथ जोड़कर विनय पूर्वक बोलीमेरे पिता और भाई के तुल्य उपस्थित सज्जनो! आपको मेरे लिये यहां निमंत्रण दिया गया है। मगर मैं इस संसार से छूटना चाहती हूं। इसलिए आप विवाहोत्सव की जगह मेरा दीक्षोत्सव मनाकर मुझे उपकृत कीजिए और मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा दीजिए।' . राजा लोग यह विनय भरी वाणी सुनकर बोले – 'हे अनधे! ऐसा ही हो।' सुमति सात सौ कन्याओं के साथ सुव्रत मुनि से दीक्षा ग्रहणकर, उग्र तपकर, केवलज्ञान पा अंत में मोक्ष गयी। कालांतर में वासुदेव अनंतवीर्य चौरासी लाख पूर्व की आयु मोगकर निकाचित कर्म से प्रथम नरक में गया। वहां बयालीस हजर वर्ष पर्यन्त नरक के नाना प्रकार के कष्ट सहन किये। फिर वासुदेवभव के पिता ने जो चमरेन्द्र हुए थे - वहां आकर उसकी वेदना शांत की। . बंधु के शोक से व्याकुल होकर बलभद्र अपराजित ने भी तीन खंड पृथ्वी का राज्य अपने पुत्र को सौंप, जयधर गणधर के पास दीक्षा ग्रहण की। उनके साथ सोलह हजार राजाओं ने भी दीक्षा ली। इस तरह बलभद्र : श्री तीर्थंकर चरित्र : 117 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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