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________________ १३. श्री विमलनाथ चरित्र विमलस्वामिनो वाचः, कतकक्षोदसोदराः । जयन्ति त्रिजगच्चेतो-जलनैर्मल्यहेतवः ॥ भावार्थ - कतक फल के चूर्ण जैसी, तीन लोक के प्राणियों के हृदयरूपी जल को निर्मल बनानेवाली श्री विमलनाथ स्वामी की वाणी जयवंती हो। प्रथम भव : धातकी खंड के प्राग विदेह में भरत क्षेत्र है। उसमें महापुरी नगरी है। उसका राजा पद्मसेन था। उसको वैराग्य उत्पन्न हुआ। सर्वगुप्त मुनि के पास उसने दीक्षा ली। सम्यक् प्रकार से चारित्र का पालन किया। और अर्हद्भक्ति आदि बीस स्थानक की आराधना से तीर्थंकर गोत्र बांधा। चिर काल तक मुनिव्रत पालन किया। दूसरा भव : आयु पूर्ण होने पर पद्मोत्तर का जीव सहस्रार स्वर्ग में बड़ा ऋद्धिवान देव हुआ। वहां पर नाना प्रकार के सुख भोगे। तीसरा देव : स्वर्ग से पद्मोत्तर का जीव च्यवकर कंपिला नगर के राजा कृतवर्मा की रानी श्यामा के गर्भ में वैशाख सुदि १२ के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में गर्भ में आया। इंद्रादि देवों ने च्यवनकल्याणक मनाया। गर्भ का समय पूरा होने पर माघ सुदि ३ के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में वराह (सूअर) के चिह्न युक्त पुत्र को श्यामा देवी ने जन्म दिया। छप्पन दिक्कुमारी एवं इंद्रादि देवों ने जन्मकल्याणक मनाया। गर्भ समय में माता के परिणाम निर्मल रहे थे। इससे पुत्र का नाम विमलनाथ रखा गया। युवा होने पर माता-पिता ने आग्रह : श्री विमलनाथ चरित्र : 90 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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