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________________ एक दिन लोकांतिक देवों ने आकर दीक्षा लेने की प्रार्थना की वासुपूज्य स्वामी ने वरसीदान देकर फाल्गुन वदि ३० के दिन वरुण नक्षत्र में छ? तप सहित दीक्षा ली। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक किया। दूसरे दिन महापुर नगर में राजा सुनंद के यहां उन्होंने पारणा किया। प्रभु एक मास छद्मस्थपने में विहार कर गृह-उद्यान में आये। और पाटल वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग पूर्वक रहे। वहां पर माघ सुदि २ के दिन शतभिषाका नक्षत्र में प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक किया। प्रभु ने भव्य जीवों को उपदेश दिया और नाना देशो में विहार किया। उनके शासन में ६६ गणधर, ७२ हजार साधु, १ लाख ३ हजार साध्वियां, ४ सौ चौदह पूर्वधारी, ५४ सौ अवधिज्ञानी, ६५०० मनःपर्यवज्ञानी, - ६ हजार केवली, १० हजार वैक्रिय लब्धिधारी, ४ हजार ७ सौ वादी, २ लाख १५ हजार श्रावक, ४ लाख ३६ हजार श्राविकाएँ तथैव चंद्रा नाम की शासन देवी और कुमार नामक यक्ष थे। . मोक्ष काल निकट ज़ान भगवान चंपा नगरी में पधारे। वहां छ: सौ मुनियों के साथ अनशन व्रत ग्रहण कर एक मास के अंत में आषाढ़ सुदि १४ के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में प्रभु मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने निर्वाणकल्याणक किया। .प्रभु १८ लाख वर्ष कुमार वय में और ५४ लाख वर्ष दीक्षापर्याय में इस तरह ७२ लाख वर्ष की आयु समाप्त कर मोक्ष में गये। उनका शरीर ७० धनुष ऊंचा था। ____श्रेयांसनाथ के मोक्ष जाने के ५४ सागरोपम बीतने पर वासुपूज्यजी मोक्ष में पधारे। इनके समय में द्विपृष्ठ वासुदेव, विजय बलभद्र और तारक प्रतिवासुदेव हुए थे। चंपापुरी के आप सितारे, वासुपूज्य जिन मोक्ष पधारें । पंच कल्याणक इण पूरी आहे, भक्तजनों के मन को मोहे ॥ : श्री तीर्थंकर चरित्र : 89 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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