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________________ ॐ ॥ ॐ ह्रीं अर्ह नमः ॥ PMMMMMMAMAMAMAMTAMAMMIMIMAMMomma परम पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. के * आशीर्वचन * Lwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwes सत्तरहवीं सदी के महान् सन्त, प्राध्यात्मिक अद्भुतयोगी 'श्री आनन्दघनजी [लाभानन्दजी] महाराज' सुप्रसिद्ध विश्वविख्यात हो गये हैं। ** उन्होंने-श्री जिनवाणी के सिन्धु-सागर को अपनी अनुपम कवित्वशक्ति से पदादिरूप गागर में भर दिया है। * भेदज्ञान के द्वारा जड़ और चेतन दोनों का पृथक्करण किया है। * आगम एवं निगम को आत्मसात् किया है । सम्यग्ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र (आचरण) को ही प्रादर्श जीवन का कार्यक्षेत्र बनाया है। . * अपनी स्वरूपस्थ सुन्दर साधना ने सर्वथा ही प्रतिबन्ध मुक्त कर दिया है। * रजकण एवं रत्नकण को समान दृष्टि से देखकर. उन्हें पुद्गल समझकर देखा-अनदेखा कर दिया है । xxwwwwwwwwwwwwwwws
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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