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________________ 我我我我我我获我我我我秋我我我 ॥ स म प ण है M 张秋秋秋我我我我我我我我我我我就是我我我我我我我既狀戏我我 १७ वीं सदी के महान संत, प्राध्यात्मिक अद्भुतयोगी । श्री आनन्दघनजी [लाभानन्दजी] महाराज महामहो पाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज के समकालीन थे। ___'पानन्दघन चौबीसी' उनकी श्रेष्ठतम कृति है। इन + स्तवनों में श्री मानन्दघनजी म. श्री ने अपने अन्तर-हृदय के भावों को अभिव्यक्त किया है । इन स्तवनों के माध्यम * से उन्होंने समस्त मुक्ति-मोक्षमार्ग का अनुपम अवतरण, कर लिया है। वास्तविकता में यह जिन-स्तवन चौबीसी - 'गागर में सागर' समान है । * भले शब्द-देह से इन स्तवनों का कद छोटा लगता * है, किन्तु अर्थ-दृष्टि से ये प्रति विराट् हैं। ये महायोगी * श्री आनन्दघनजी महाराज की अन्तरात्मा के उद्गार स्वरूप हैं। भक्तात्मा जब इन स्तवनों के गीत-गानादिक में मग्न हो जाती है, तब उसे विशिष्ट प्रात्मानन्द की। * अनुपम अनुभूति होती जाती है। ऐसे रचनाकार, अध्यात्मयोगी श्री आनन्दघनजी महाराज की यह श्रेष्ठतम कृति-भावार्थ युक्त उन्हीं को सादर समर्पित है.... -जैनमल सुराणा
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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