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________________ श्री आनन्दघन पदावली-५१ मैं आत्मा न पुरुष हूँ न नारी। इसका लाल, पीला, नीला कोई रंग नहीं है। रंग तो इन्द्रियगोचर पदार्थों में होता है। आत्मा इन्द्रिय अगोचर है अथवा आत्मा का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन चार वर्गों में से कोई वर्ण नहीं है। जब तक मैं पुरुष हूँ, स्त्री हूँ, ऐसा अहंभाव रहता है, तब तक आत्मा के शुद्ध धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती। अन्तर से पुरुष अथवा स्त्रीत्व धर्म का अहंभाव प्रकट नहीं होना चाहिए, जिसकी ऐसी दशा प्रकट हुई है वह हमारा नाम रख सकता है। संसार में जितने वर्ण एवं जितनी जातियाँ कही जाती हैं, वैसा मैं नहीं हूँ। मैं किसी पंक्ति में नहीं हूँ। बाह्य दृष्टि से मैं साधु अथवा साधक नहीं हूँ और न मैं लघु अथवा भारी हूँ ॥१॥ मैं (प्रात्मा) न उष्ण हैं और न शीतल। उष्ण पुद्गल का पर्याय है और शीत भी षुद्गल का पर्याय है। पुद्गल-द्रव्य से प्रात्मा भिन्न है। प्रात्मा में उष्णता एवं शीतलता नहीं रहती। पुद्गल से आत्मा भिन्न होने से उसमें छोटे-बड़े का सम्बन्ध नहीं है। मैं किसी का न तो भ्राता है और न मैं किसी की बहन हैं। मैं (आत्मा) किसी का न तो पिता हूँ और न पुत्र। मैं अरूपी असंख्य प्रदेशमय प्रात्मा हूँ। आत्मा नित्य है; न यह कभी उत्पन्न हुआ और न किसी को उत्पन्न कर सकता है। अतः यह किसी का भाई-भगिनी, पिता-पुत्र नहीं हो सकता। यह देह ही उत्पन्न होती है इसलिए इसके साथ ही ये समस्त सम्बन्ध घटित होते हैं। देह के सम्बन्ध से किसी को भ्राता मानना और अमुक को भगिनी मानना-यह भी वस्तुत: विचार करें तो भ्रान्ति है। अपनी मात्मा के समान समस्त प्रात्माएँ हैं। बाह्य वस्तुएँ जड़ हैं, अतः उनमें आत्मा का कुछ भी नहीं है। जो उपर्युक्त कथनानुसार आत्मा का सम्यक् स्वरूप जानते हैं वे ही आनन्दघन स्वरूप जानने के लिए समर्थ हैं ॥२॥ न मैं मन हँ, न मैं शब्द हूँ। द्रव्य-मन से प्रात्मा भिन्न है। मनोद्रव्य की शुद्धता की वृद्धि होने के साथ उत्तम शुद्ध लेश्या प्रकट होती है और भाव-मन भी उच्च कोटि का हो जाता है। शब्द भी जड़ है। पुद्गल-द्रव्यरूप शब्द होने से प्रात्मा शब्द से भिन्न है। शब्द भावश्रुत का कारण होने से द्रव्यश्रुत रूप है। आत्मा शब्दरूप नहीं है अतः शब्दों से भिन्न प्रात्मा है-यह निश्चय करना चाहिए। न मैं (आत्मा) शरीर के धारण करने वाले पंच महाभूत से उत्पन्न हूँ, न मेरा (आत्मा का) कोई वेष है ताकि मैं वेषधारी कहलाऊँ। न मैं कर्ता हूँ न करनी।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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