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________________ श्री श्रानन्दघन पदावली - ३७६ निखेवरणा ते निवावु रे, तेह थकी चित्त वालबु रे, पर वस्तु वलि जेह । करवा धर्म सुं नेह | धर्म नेह जब जागियो रे, तब प्रानंद जनाय । प्रगट्यो स्वरूप विषे हवे रे, ध्याता ते ध्येय थाय । अज्ञान व्याधि नसावा रे, ज्ञान आस्वादन हवे मुनि: करे रे, तृप्ति स्वरूप मां जे मुनिवरा रे, समिति सुमति स्वरूप प्रगटावीने रे, दीधो काल अनादि अनंतनो रे, हतो ते पर पुद्गल थीं हवे रे, विरक्त • ५. पारिठावरिया समिति द्रव्य भाव दोय भेदथी रे, मुनिवर 'श्रानंदघन' पद साधसे रे, ते समिति पंचमी मुनिवर श्रादरो रे, स्वरूप० ।। २ ॥ मुनि मारग रूडी परे साधजो रे, स्वरूप ० ।। ३ ॥ सुधारस जेह | न पामे तेह | सुं धरे स्नेह | कुमति नो छेह | * ढाल ५ (रूडा राजवी, ए देशी ) स्वरूप० ।। ४॥ स्वरूप० ।। ५ ।। सलंगण भाव । थयो स्वभाव | समिति धार । मुनिगुरण भंडार । स्वरूप० ।। ६ ।। स्वरूप ० ।। ७ ।। उन्मारग नो परिहार रे, सुधा साधुजी । पर छोडी ने निज संभार रे, सुधा साधुजी ॥ १ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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