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________________ स्तवन में भाव-अध्यात्म की विशेषता बताई गई है। भगवान श्री वासुपूज्य के स्तवन में कर्मचेतना, कर्मफल-चेतना तथा ज्ञान-चेतना का स्वरूप-दर्शन कराया गया है। श्री विमलनाथ प्रभु के स्तवन में जिनदर्शन से आनन्दयुक्त आश्चर्य होना बताया गया है। श्री अनन्तनाथ प्रभु के स्तवन में उत्सूत्रवचन के त्याग एवं सत्य-वचन से देव-गुरु-धर्म की शुद्धि का दर्शन है। श्री धर्मनाथ भगवान के स्तवन में परमात्मा के साथ अपनी आत्मा की प्रगति का आह्वान किया गया है। श्री शान्तिनाथ परमात्मा के स्तवन में प्रात्म-शान्ति का स्वरूप बताने के साथ प्रात्मा को धन्यता बताई गई है। श्री कुन्थुनाथ प्रभु के स्तवन में मनोनिग्रह की दुर्लभता बताई गई है। श्री अरनाथ भगवान के स्तवन में स्व-समय और पर-समय स्वरूप परमधर्म समझाते हुए द्रव्य-गुण-पर्याय का स्वरूपदर्शन कराया गया है। श्री मल्लिनाथ परमात्मा के स्तवन में बताया गया है कि तीर्थंकर अठारह दोषों से रहित होते हैं। श्री मुनिसुव्रतस्वामी के स्तवन में षड्दर्शनों में से तत्त्व खींचकर स्याद्वाद की सिद्धि बताई गई है। श्री नमिनाथ परमात्मा के स्तवन में श्रीमद् ने बताया है कि जैनदर्शन रूपी महासागर में षड्दर्शन रूपी नदियों का विलीनीकरण होता है तथा जैनदर्शन रूपी पुरुष के षड्दर्शनों रूपी अंगों का समन्वय बताते हुए चूणि, भाष्य, सूत्र, नियुक्ति, वृत्ति, परम्परा एवं अनुभव को स्वीकार किया गया है। श्री नेमिनाथ प्रभु के स्तवन में राजीमती एवं नेमिनाथ के व्यावहारिक सम्बन्ध में से होने वाले आध्यात्मिक रूपान्तरण को बताया गया है। भगवान श्री पार्श्वनाथ प्रभु के स्तवन में अगुरुलघु गुण का स्वरूप-दर्शन है और शासन-नायक श्री महावीर स्वामी के स्तवन में आत्मिक वीर्य की शक्ति के द्वारा आत्मा में से आनन्दघन पद प्रकट करने के साधनों का स्पष्टीकरण किया गया है। ___ श्रीमद् प्रानन्दघनजी की समस्त रचनाएँ काव्य में हैं.। काव्यमय साहित्य पद्य में होने से अन्तर की भावनाओं को स्पर्श करता है और जीवन को रसमय बनाता है। जो साहित्य आत्मा को कल्याणकारी प्रवृत्ति की ओर ले जाता है वही सच्चा काव्य-साहित्य है। इस प्रकार का साहित्य हमें जीवन जीना सिखाता है, हमारे प्राचारों को पवित्र करके विवेक की वृद्धि करता है, हमारे भीतर धर्म-भावना जागृत करता है, पापों के प्रति तिरस्कार भाव उत्पन्न करता है, चरित्र का निर्माण करता है, मैत्री भावना प्रवाहित करता है और आत्मोन्नति करता है। योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी के पद पाठकों के हृदय पर अमिट प्रभाव डालते हैं।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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