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________________ 'गगनमंडल में गौत्रों वीपारणी, धरती दूध जमाया।' 'ससरो हमारो बालो भोलो, सासु बाल कुवारी।' इत्यादि उलटबांसियों के द्वारा संसार के स्वरूप का ज्ञान, नय, निक्षेप, प्रमाण एवं सप्तभंगी से प्रात्म-सिद्धि, सुमति-कुमति के संवाद, समता-ममता संवाद, प्रात्मा के अलक्ष्य स्वरूप को प्राप्त करने का तरीका, आशा-तृष्णा को दासी बनाने का तरीका, व्यावहारिक परिवारजनों के नामों के द्वारा आध्यात्मिक सम्बन्धों का संयोजन, आत्मारूप नटनागर की बाजो, अनुभव प्याले के रस की मादकता, षड्दर्शन का जैन दर्शन में समन्वय, स्याद्वाद का स्वरूप, आगमों की अगोचरता, आत्मा रूपी पति की अनुपस्थिति के कारण सुमति (समता) की विरह-व्यथा, सच्चे सद्गुरु की पहचान, सुमति एवं प्रात्मा का मेल. करानेवाले विवेक एवं अनुभवमित्रों का स्वरूप, मूलधन एवं ब्याज के रूप में आत्म-स्वरूप एवं कर्म का सम्बन्ध, सम्यक्त्व-प्राप्ति के पश्चात् आत्मा की अमरता तथा अन्वय व्यतिरेक से आत्मा का दर्शन आदि वर्णनों से युक्त पदों की रचनाएँ की हैं। ये पद एवं अन्य रचनाएँ उनके अन्तःकरण की मंगल वाणी हैं जो युगों तक जन-मानस को उद्वेलित करती रहेंगी। .: 'मानन्दघन चौबीसी' के स्तवनों द्वारा प्रभु-भक्ति के साथ प्रात्मा का अध्यात्म सम्बन्ध स्थापित किया गया है । वे सरस अध्यात्म-शिरोमणि थे। उनके स्तवनों में अनेक तत्त्वों का समावेश है। श्री ऋषभ जिनेश्वर के स्तवन में उनका प्रेम प्राप्त करने के लिए परमात्मा के प्रति आत्मसमर्पण है। श्री अजितनाथ प्रभु के स्तवन में परमात्मा का मार्ग-प्रदर्शन है। श्री सम्भवनाथ के स्तवन में प्रभु-दर्शन की उत्सुकता एवं उत्कट अभिलाषा व्यक्त की गई है। श्री अभिनन्दन स्वामी के स्तवन में बताया गया है कि परमात्म-स्वरूप का दर्शन कितना दुर्लभ है ! श्री सुमतिनाथ प्रभ के स्तवन में श्रीमद आनन्दघन जी ने तीन प्रकार का आत्म-स्वरूप बतलाया है। भगवान श्री पद्मप्रभु के स्तवन में आत्मा का कर्म से विच्छेद होने पर जीव कितना मुक्त होता है यह बताया गया है। श्री सुपार्श्वनाथ के स्तवन में विविध स्वरूप-सूचक अनेक नाम हैं। श्री चन्द्रप्रभु के स्तवन में भगवान के स्वरूप-दर्शन से होने वाला हर्ष व्यक्त किया गया है। श्री सुविधिनाथ परमात्मा के स्तवन में प्रभु की द्रव्य एवं भाव-पूजा के प्रकार बताये गये हैं। श्री शीतलनाथ भगवान के स्तवन में करुणा, कोमलता, तीक्ष्णता एवं उदासीनता स्वरूप परमात्मा के आत्मा में विद्यमान गुणों का दर्शन है। श्री श्रेयांसनाथ भगवान के
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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