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________________ श्री प्रानन्दघन पदावली-६७ विवेचन -सुमति को संगति से आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को जान सकती है। यदि चेतन, आनन्द स्वभाव वाली सुमति की संगति करे तो सचमुच वह सिद्ध-बुद्ध परमात्मा हो सकता है। आनन्द स्वभाव वाली सुमति सच्ची स्त्री है और ममता, प्रानन्द स्वभाव वाली नहीं है। सुमति ने कहा कि 'हे अनुभव ! आप मेरे आत्मस्वामी को मेरा समस्त वृत्तान्त बतायें। मेरे स्वामी मूल स्वभाव से तो सरल हैं। यदि उन्हें शान्ति से समझाया जाये और समस्त वृत्तान्त उन्हें बताया जाये तो वे सम्यक्त्व आदि गुण प्राप्त करके सिद्ध-बुद्ध परमात्मा बन सकते हैं । कुमति तथा ममता की संगति से लिपटी हुई कर्म-मलिनता दूर होने पर तीन लोक में मेरे स्वामी की कोई तुलना नहीं कर सकता। वे तीन लोक के नाथ बनकर अनन्त सुख भोग सकते हैं। अत: हे अनुभव ! आप मेरी बात उन्हें अच्छी तरह समझायें ।' ( ३७ ) (राग-धन्याश्री) अनुभौ पीतम कैसे मनासी ? छिन निरधन सधन छिन, निरमल समल रूप बनासी ।। अनु० ।। १ ।। छिन में शक्र तक्र फुनि छिन में, देखू कहत अनासी । विरहजन चीज आप हितकारी, निज घन झूठ खतासी ।। अनु० ।। २ ।। तू हितुः मेरो मैं हितु तेरी, अन्तर काहे जतासी । अानन्दघन प्रभु प्रानि मिलावो, नहितर करो घनासी ।। . अनु० ।। ३ ॥ अर्थ---शुद्ध चेतना अनुभव को कहती है ---'हे अनुभव ! मेरे प्रीतम (चेतन) किस प्रकार प्रसन्न होंगे ? वे किस तरह कहना मानेंगे ? वे क्षण में ज्ञान-दर्शन रहित निर्धन, क्षण में ज्ञानदर्शनयुक्त धनवान, फिर क्षण में निर्मल स्वरूपी ज्ञानी और क्षण में अनन्तानुबन्धी के उदय से अत्यन्त मलिन रूप बताते हैं। ऐसे बहुरंगी चेतन को हे अनुभव ! कैसे मनायें ? १ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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