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________________ छेदसुत्ताणि तत्थ णं से पुव्वागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंग-सूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पति से निलिंगसूवे पडिग्गहित्तए, नो कप्पति चाउलोदणे पडिग्गहित्तए। तत्य णं से पुव्वागमणेणं दो वि पुवाउत्ताई कप्पति दो वि पडिग्गहित्तए । तत्थ णं से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताई, णो से कप्पति दो वि पडिग्गहित्तए। जे तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते, से कप्पति पडिग्गहित्तए । जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते, से णो कप्पति पडिग्गहित्तए। । स्वजन-सम्बन्धी के घर पहुंचने से पूर्व चावल पके हों और भिलिंगसूप (मूंग आदि की दाल) न पकी हो तो उसे चावल का भात लेना कल्पता है, किन्तु भिलिंगसूप लेना नहीं कल्पता है । यदि वहाँ पर उसके आगमन से पूर्व भिलिंगसूप पका हो और चावलों का भात पीछे पकाया जावे तो उसे भिलिंगसूप लेना कल्पता है, चावलों का भात लेना नहीं कल्पता है । यदि वहाँ पर उसके आगमन से पूर्व दोनों ही पूर्व में पके हुए हों तो दोनों को लेना कल्पता है । और यदि उसके आगमन से पूर्व दोनों ही पकाये हुए नहीं है किन्तु पीछे पकाये जावें तो दोनों को लेना उसे नहीं कल्पता है । उक्त कथन का सार यह है कि उसके आगमन के पूर्व जो पदार्थ पका हुआ हो, उसे लेना कल्पता है और जो पदार्थ उसके आगमन से पीछे बनाया गया है, उसे लेना नहीं कल्पता है। सूत्र २६ तस्स णं गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति एवं वदित्तए : "समणोवासगस्स पडिमापडिवन्नस्स भिक्खं दलयह" तं चेव एयारूवेण विहारेण विहरमाणं केइ पासित्ता वदिज्जा"केइ आउसो! तुमं ? वत्तव्वं सिया" "समणोवासए पडिमा-पडिवण्णए अहमंसी" ति वत्तव्वं सिया। से णं एयारूवेणं विहारेण विहरमाणे, जहण्णेणं एगाहं वा दुआहं वा तिआहं वा-जावउक्कोसेण एक्कारसमासे विहरेज्जा । से तं एकादसमा उवासग-पडिमा। (११) जब वह श्रमणभूत उपासक गृहपति के कुल (घर) में पिण्डपात (भक्तपान) की प्रतिज्ञा से प्रविष्ट हो तब उसे इस प्रकार बोलना योग्य है-प्रतिमा
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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