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________________ भगवान् जिनेन्द्र ने इनका प्रतिपादन किया है। अब इनके संख्यासम्बन्धी भेदों का वर्णन करते हैं - . धम्मो अधम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल-जंतवो ॥ ८ ॥ धर्मोऽधर्म आकाशं, द्रव्यमेकैकमाख्यातम् । अनन्तानि च द्रव्याणि, कालपुद्गलजन्तवः ॥ ८ ॥ पदार्थान्वयः-धम्मो-धर्म, अधम्मो-अधर्म, आगासं-आकाश, दव्वं-द्रव्य, इक्किक्कं-एक-एक, आहियं-कहा गया है, य-और, अणंताणि-अनन्त, दव्वाणि-द्रव्य, कालो-काल, पुग्गल-पुद्गल, जन्तवो-जीव हैं। मूलार्थ-धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों एक-एक द्रव्य हैं, तथा काल, पुद्गल और जीव ये तीनों अनन्त द्रव्य हैं, अर्थात् ये तीनों द्रव्य संख्या में अनन्त हैं। ___टीका-प्रस्तुत गाथा में द्रव्य की संख्या का विचार किया गया है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीनों एक-एक द्रव्य हैं, अर्थात् इनकी संख्या एक से अधिक नहीं है और काल, पुद्गल एवं जीव-आत्मा, ये तीनों अनन्त हैं। इनमें काल-द्रव्य तो अतीत और अनागत काल की अपेक्षा से अनन्त कहा है और पुद्गल तथा जीव द्रव्य संख्या में अनन्त हैं। यद्यपि एक आत्मा को असंख्यात-प्रदेशी माना गया है, तथापि संख्या में जीव द्रव्य अनन्त हैं और अनन्त आत्माएं इस लोक में विराजमान हैं। इनमें शुद्ध आत्मा तो मोक्षस्वरूप में निवास करते हैं और अशुद्ध आत्मा स्व-स्व-कर्मानुसार देव, मनुष्य, नरक और तिर्यग्-गति में भ्रमण कर रहे हैं। __ यद्यपि आकाश-द्रव्य भी अनन्त हैं, तथापि लोकाकाश की अपेक्षा अथवा निरंश होने की अपेक्षा से एक प्रतिपादन किया गया है। इसी प्रकार धर्म और अधर्म द्रव्य के विषय में भी जान लेना चाहिए। अब प्रत्येक द्रव्य का लक्षण द्वारा वर्णन करते हैं - गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥ ९ ॥ गतिलक्षणस्तु धर्मः, अधर्मः स्थितिलक्षणः । भाजनं सर्वद्रव्याणां, नभोऽवगाहलक्षणम् ॥ ९ ॥ पदार्थान्वयः-गइलक्खणो-गतिलक्षण, धम्मो-धर्मास्तिकाय है, उ-और, ठाणलक्खणोस्थानलक्षण, अहम्मो-अधर्मास्तिकाय है, भायणं-भाजन, सव्वदव्वाणं-सर्व द्रव्यों का, नहं-आकाश, ओगाहलक्खणं-अवगाह लक्षण वाला है। ___ मूलार्थ-गति अर्थात् चलने में सहायता देना धर्मास्तिकाय का लक्षण है, स्थिति अर्थात् ठहरने में सहायक होना अधर्मास्तिकाय का लक्षण है। सर्व द्रव्यों का भाजन आकाश-द्रव्य है। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [७७] मोक्खमग्गगई अट्ठावीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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