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________________ अब ग्रैवेयक के नव भेदों का वर्णन करते हैं, यथा हेट्ठिमाहेट्ठिमा चेव, हेट्ठिमामज्झिमा तहा ।। हेट्ठिमाउवरिमा चेव, मज्झिमाहेट्ठिमा तहा ॥ २१२ ॥ मज्झिमामज्झिमा चेव, मज्झिमाउवरिमा तहा । उवरिमाहेट्ठिमा चेव, उवरिमामज्झिमा तहा ॥ २१३ ॥ उवरिमाउवरिमा चेव, इय गेविज्जगा सुरा । अधस्तनाऽधस्तनाश्चैव, अधस्तनामध्यमास्तथा । अधस्तनोपरितनाश्चैव, मध्यमाऽधस्तनास्तथा ॥ २१२ ॥ मध्यममध्यमाश्चैव मध्यमोपरितनास्तथा । उपरितनाऽधस्तनाश्चैव, उपरितनमध्यमास्तथा ॥ २१३ ॥ उपरितनोपरितनाश्चैव, इति ग्रैवेयकाः सुराः ॥ .. पदार्थान्वयः-हेट्ठिमाहेट्ठिमा-नीचे का नीचा, तहा-तथा, हेट्ठिमामज्झिमा-नीचे का मध्यम, हेट्ठिमाउवरिमा-नीचे का ऊपर, चेव-पादपूर्ति के लिए है, मज्झिमाहेट्ठिमा-मध्यम का नीचा, मज्झिमामज्झिमा-मध्यम का मध्यम, तहा-तथा, मज्झिमाउवरिमा-मध्यम का उपरितम, च-और, उवरिमाहेट्ठिमा-ऊपर का निचला, तहा-तथा, उवरिमामज्झिमा-ऊपर का मध्यम, एव-पादपूर्ति में है, उवरिमाउवरिमा-ऊपर के ऊपर का, इय-इस प्रकार से, गेविज्जगा-ग्रैवेयक, सुरा-देव-कथन किए गए हैं। मूलार्थ-नवग्रैवेयक विमानों की तीन श्रेणियां हैं। एक ऊपर की, दूसरी मध्य की और तीसरी नीचे की। तथा प्रत्येक त्रिक के भी-ऊपर, मध्य और नीचे, ये तीन-तीन भेद हैं। यथा-१. निचले त्रिक के नीचे के देवलोक भद्र, २. निचले त्रिक के मध्य के देवलोक सुभद्र, ३. निचले त्रिक के ऊपर के देवलोक सुजात, ४. मध्य त्रिक के नीचे के देवलोक सुमानस, ५. मध्य त्रिक के मध्य के देवलोक सुदर्शन, ६. मध्य त्रिक के ऊपर के देवलोक प्रियदर्शन, ७. ऊपर के त्रिक के नीचे के देवलोक अमोघ, ८. ऊपर के त्रिक के मध्य के देवलोक प्रतिभद्र, ९. ऊपर के त्रिक के ऊपर के देवलोक यशोधर, इस प्रकार ग्रैवेयक देवों के ९ भेद हैं। टीका-नव ग्रैवेयक विमानों के तीन त्रिक हैं। उनमें प्रत्येक त्रिक में तीन-तीन देवलोक हैं। उन्हीं में रहने वाले देव ग्रैवेयक कहलाते हैं। उन देवलोकों के नाम हैं भद्र, सुभद्र, सुजात, सुमानस, सुदर्शन, प्रियदर्शन, अमोघ, प्रतिभद्र और यशोधर, ये क्रमशः उनके नव भेद बताए गए हैं। अब अनुत्तर विमानों के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा विजया वेजयंता य, जयंता अपराजिया ॥ २१४ ॥ सव्वत्थसिद्धिगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । . इय वेमाणिया एए, णेगहा एवमायओ ॥ २१५ ॥ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४६०] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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