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________________ पदार्थान्वयः-नेरइया-नैरयिक-नारकी जीव, सत्तविहा-सात प्रकार के, सत्तसु-सात, पुढवीसु-पृथिवियों में, भवे-होते हैं, यथा, रयणाभा-रत्नाभा, सक्कराभा-शर्कराभा, य-और, बालुयाभा-वालुकाभा, आहिया-कथन की गई हैं, तथा, पंकाभा-पंकाभा, धूमाभा-धूमाभा, तमा-तमा-अंधकारमयी, तहा-तथा, तमतमा-तमस्तम-अत्यन्त अन्धकारमयी, इइ-इस प्रकार, एए-ये, नेरइया-नारकी जीव, सत्तहा-सात प्रकार से, परिकित्तिया-कथन किए गए हैं। मूलार्थ-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुप्रभा, पंकप्रभा, धूम्रप्रभा, तमःप्रभा और महातमप्रभा, ये सात नरक-पृथिवी कही जाती हैं। इन सात पृथिवियों में रहने वाले नारकी जीव सात प्रकार के हैं। ___टीका-प्रस्तुत गाथा में नारकी जीवों के स्थान और भेदों का दिग्दर्शन कराया गया है। अधोलोक में सात नरकभूमियां हैं, जो कि सात नरकों के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनमें नारकी जीव निवास करते हैं, अर्थात् जिन जीवों ने अपने अध्यवसाय के अनुसार नरकगति की आयु का बन्ध किया है उनको वहां रहना पड़ता है। वे भूमियां एक दूसरी के नीचे के क्रम से सात हैं, जिनका कि ऊपर निर्देश किया गया है। १. रत्नप्रभा-रत्नों के प्रकाश की भांति जिसका प्रकाश हो, अथवा भवनपति देवों के भवनों की जिसमें प्रभा विद्यमान हो उसे रत्नप्रभा कहते हैं। २. शर्कराप्रभा-जिसमें श्लक्ष्ण पाषाणों की प्रभा देखी जाती है वह शर्कराप्रभा कहलाती है। ३. बालुप्रभा-बालू. के समान कान्ति वाली। ४. पंकप्रभा-पंक के समान प्रभा अर्थात् कान्ति वाली। ५. धूमप्रभा-धूम के समान कान्ति वाली। यद्यपि नरक में धूम का सद्भाव नहीं माना है तथापि वहां पर तदाकार धूमाकार पुद्गलों का परिणमन होने से धूमप्रभा नाम है। ६. तमः प्रभा-अन्धकारमयी छठी नरकभूमि। ७. महातमःप्रभा-अत्यन्त अन्धकारमयी महाभयानक स्वरूप वाली सातवीं नरकभूमि। इन सात नरकभूमियों में सात ही प्रकार के नारकी जीव निवास करते हैं। तथा सात पर्याप्त और सात अपर्याप्त इस प्रकार नारकी जीवों के १४ भेद हैं। अब इसका क्षेत्र विभाग कहते हैं, यथा लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे उ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥ १५८ ॥ १. दीपिकावृत्तिकार ने इस विषय में निम्नलिखित अन्य दो गाथाएं उद्धृत की हैं, यथा“घम्मा वंसगा सेला, तहा अंजणरिट्ठगा। मघा मघवई चेव, नारइया य पुणो भवे॥ रयणाइ गुत्तउ चेव, तहा घम्माइणायओ। इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया॥" इन दोनों गाथाओं में नरकों के नामों का उल्लेख किया गया है। गाथाओं का अर्थ सुगम है। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४३३] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं.
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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