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________________ अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे .कीडपयंगे य, ढिंकुणे कुंकणे तहा ॥ १४६ ॥ . कुक्कुडे सिंगरीडी य, नंदावत्ते य विंच्छिए । डोले भिंगिरीडी य, विरली अच्छिवेहए ॥ १४७ ॥ अच्छिले माहए अच्छि, (रोडए) विचित्ते चित्तपत्तए । उहिंजलिया जलकारी य, नीयया तंबगाइया ॥ १४८ ॥ इय चउरिंदिया एए, णेगहा एवमायओ । लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिया ॥ १४९ ॥ अन्धिकाः पौत्तिकाश्चैव, मक्षिका मशकास्तथा । भ्रमराः कीटपतङ्गाश्च, ढिकुणाः कुकणास्तथा ॥ १४६ ॥ कुक्कुटः । शृङ्गरीटी च, नन्दावर्ताश्च वृश्चिकाः । डोला भृङ्गरीटकाश्च, विरल्योऽक्षिवेधकाः ॥ १४७ ॥ अक्षिला मागधा अक्षि-, (रोडका) विचित्राश्चित्रपत्रका । उपधिजलका जलकार्यश्च, नीचकास्ताम्रकादिकाः ॥ १४८ ॥ इति चतुरिन्द्रिया एते, अनेकधा एवमादयः । लोकस्यैकदेशे ते., सर्वे परिकीर्तिताः ॥ १४९ ॥ . पदार्थान्वयः-अंधिया-अन्धिक, पोत्तिया-पोतिक, च-और, मच्छिया-मक्षिका, तहा-तथा, मसगा-मशक, भमरे-भ्रमर, य-और, कीडपयंगे-कीट और पतंग; ढिंकुणे-ढिंकण, कुंकणे-कुंकण, कुक्कडे-कुर्कुट, य-और, सिंगरीडी-शृंगरीटी, नंदावत्ते-नन्द्यावर्त, य-और, विंच्छिए-बिच्छू, डोले-डोल, भिंगिरीडी-भृगरीटी, विरली-विरिली, अच्छिवेहए-अक्षिवेधक, अच्छिले-अक्षिल, माहए-मागध, अच्छिरोडए-अक्षिरोड़क, विचित्ते-विचित्र, चित्तपत्तए-चित्तपत्रक, उहिंजलिया-उपधिजलक, य-और, जलकारी-जलकारी, नीयया-नीचका, तंबगाइया-ताम्रकादि, इय-इस प्रकार, एए-ये सब, चउरिंदिया-चतुरिन्द्रिय जीव, एवमायओ-इत्यादि, णेगहा-अनेक प्रकार के, परिकित्तिया-कथन किए गए हैं, ते सव्वे-वे सब, लोगस्स-लोक के, एगदेसम्मि-एक देश में स्थित हैं। मूलार्थ-अन्धक, पौत्तिक, मक्षिका, मशक, भ्रमर, कीट, पतंग, ढिंकण, कुंकण, कुर्कुट, सिंगरीटी, नन्द्यावर्त, बिच्छू, डोल, भुंगरीटक और अक्षिवेधक तथा अक्षिल, मागध, अक्षिरोड़क, विचित्र, चित्रपत्रक, उपधिजलका, जलकारी, नीचक और ताम्रक आदि अनेक प्रकार के चतुरिन्द्रिय जीव कहे गए हैं और ये सब लोक के एकदेश में रहते हैं। ____टीका-जिन जीवों के स्पर्श, रसना, घ्राण और चक्षु-ये चार इन्द्रियां हों, उन्हें चतुरिन्द्रिय जीव कहते हैं। इनमें मक्खी , भ्रमर, मशक और बिच्छू आदि कई एक नाम तो प्रसिद्ध हैं और शेष जो नाम हैं, वे हमारे लिए अप्रसिद्ध हैं। कारण यह है कि हर वस्तु का देशभेद से भिन्न-भिन्न नाम सुनने में उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४२९] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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