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________________ सादि-सपर्यवसित है। टीका-प्रस्तुत गाथा में अप्काय का काल-सापेक्ष वर्णन किया गया है। अप्काय प्रवाह की अपेक्षा से तो अनादि-अनन्त है और स्थिति को अपेक्षा से सादि और सान्त है, तात्पर्य यह है कि भव-स्थिति और काय-स्थिति को लेकर वह सादि-सान्त है। अब इसकी भवस्थिति का वर्णन करते हैं, यथा सत्तेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई आऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ८८ ॥ सप्तैव सहस्राणि, वर्षाणामुत्कृष्टा भवेत् । आयुःस्थितिरपाम्, अन्तर्मुहूर्तं जघन्यका ॥ ८८ ॥ पदार्थान्वयः-आऊणं-अप्काय के जीवों की, उक्कोसिया-उत्कृष्ट, आउठिई-आयु-स्थिति, सत्तेव सहस्साइं-सात सहस्र, वासाण-वर्षों की, भवे-होती है, और, जहन्निया-जघन्य स्थिति, अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त की होती है। मूलार्थ-अप्काय के जीवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति सात हजार वर्ष की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की होती है। टीका-जलकाय के जीवों का उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक आयुमान सात हजार वर्ष का है और न्यून से न्यून अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है। अब काय-स्थिति के विषय में कहते हैं- .. असंखकालमुक्कोसं, अंतोमहत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ८९ ॥ ... असङ्ख्यकालमुत्कृष्टा, अन्तर्मुहूर्त जघन्यका । कायस्थितिरपाम्, तं कायं त्वमुंचताम् ॥ ८९ ॥ पदार्थान्वयः-आऊणं-अप्काय के जीवों की, कायठिई-काय-स्थिति, तं-उस, काय-काया को, अमुंचओ-न छोड़ते हुओं की, जहन्नयं-जघन्य, अंतोमुहुत्तं-अंतर्मुहूर्त की, उक्कोसं-उत्कृष्ट, असंखकालं-असंख्य काल की है, तु-अवधारण में है। मलार्थ-अपनी उस कायस्थिति को न छोड़ते हुए अप्काय के जीवों की जघन्य काय-स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है। टीका-यदि यह आत्मा अप्काय में ही जन्मती और मरती रहे तो उसकी न्यून से न्यून काय-स्थिति अर्थात् अप्काय को छोड़कर दूसरी काय में जाने तक की स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र है तथा ' उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक असंख्यात काल पर्यन्त की है। इसके बाद तो उसको अप्काय का परित्याग करके अन्यत्र जाना ही पड़ेगा, परन्तु मध्यम स्थिति की कोई मर्यादा नहीं है, अर्थात् अन्तर्मुहूर्त उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४०२] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अल्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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