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________________ परिभाषा में 'पादोन पौरुषी' कहते हैं। यहां पर भांडोपकरण से प्राचीन गुर्जर भाषा में मुख-वस्त्रिका से लेकर पात्र आदि सब उपकरणों का ग्रहण किया जाता है। प्रतिलेखना यह पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है-चक्षुओं द्वारा देखकर फिर रजोहरण आदि से प्रमार्जन करना, फिर गुरुओं को वन्दना करके-हाथ जोड़कर इस प्रकार कहे, यह आगामी गाथा से सम्बन्ध रखता है। यद्यपि सूत्र में तो प्रथम चतुर्थभाग ही लिखा है, परन्तु यह सामान्य वाक्य है, जिससे कि 'पादोन पौरुषी' को पौरुषी कहा गया है। जैसे कि लोक-व्यवहार में कुछ न्यूनता होने पर भी वस्तु को वस्तु ही कहा जाता है और यथा अपूर्ण पट को भी पट ही कहते हैं, इसी प्रकार कुछ न्यून चतुर्थभाग ही कहा गया है। सारांश यह है कि कुछ न्यून चतुर्थभाग अर्थात् पादोन पौरुषी में भांडोपकरणादि की प्रतिलेखना करे। . . गुरु को वन्दना करके हाथ जोड़कर उनके प्रति इस प्रकार कहे पुच्छिज्ज पंजलिउडो, किं कायव्वं मए इह । इच्छं निओइउं भन्ते ! वेयावच्चे व सज्झाए ॥ ९ ॥ पृच्छेत्प्राञ्जलिपुटः, किं कर्त्तव्यं मयेह? इच्छामि नियोजयितुं भदन्त !, वैयावृत्ये वा स्वाध्याये ॥९॥ पदार्थान्वयः-पंजलिउडो-हान जोड़कर, पुच्छिज्ज-पूछे, मए-मैं, इह-इस समय, किं कायव्वं-क्या करूं, भन्ते-हे भदन्त ! इच्छं-मैं चाहता हूं, निओइउं-नियुक्त करने को, वैयावच्चे-वैयावृत्य में, व-अथवा, सज्झाए-स्वाध्याय में-अपनी आत्मा को। . मूलार्थ-हाथ जोड़कर गुरुजनों से पूछे कि 'हे भगवन् ! इस समय मैं क्या करूं? हे भदन्त! मैं चाहता हूं कि अपने आत्मा को आपकी वैयावृत्य में अथवा स्वाध्याय में नियुक्त करूं।' टीका-जब प्रतिलेखना कर चुके, तब वन्दना करने के अनन्तर हाथ जोड़कर गुरुओं से पूछे कि "भगवन् ! अब इस समय मुझे आप किस काम में नियुक्त करना चाहते हैं-वैयावृत्य में अथवा स्वाध्याय में ? तात्पर्य यह है कि आप मुझे जिस काम में नियुक्त करना चाहेंगे, मैं उसी में नियुक्त हो जाऊंगा। इस प्रकार आज्ञा मांगने पर गुरु जिस कार्य के लिए आदेश करें, उसी में प्रवृत्त हो जाए।' १. तथा च बृहद्वृत्तिकारः-'यद्वा पूर्वस्मिन्नभश्चतुर्थभागे आदित्ये समुत्थिते बहुतरप्रकाशी भवनात् तस्य, भांडमेव भांडकं ततस्तदिव धर्म-द्रविणोपार्जना-हेतुत्वेन मुखवस्त्रिका वर्षाकल्पादीह भाण्डकमुच्यते, तत् प्रतिलिख्य वंदित्वा च ततो गुरुं पृच्छेत्, शेषं प्राग्वत्। उपलक्षणं चैतत्-यतः सकलमपि कृत्यं विधाय पुनरभिवन्दनापूर्वकं प्रष्टव्या एव गुरवः इत्यादि।' - उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२५] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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