SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जब गुरु वाचनादि देते हों, तब उनके वचनों को सत्कार पूर्वक ग्रहण करना; जैसे कि वाचनादि लेते समय 'तथास्तु' इत्यादि कहना, इसका नाम तथाकार समाचारी है। नवमी सामाचारी अभ्युत्थान है। गुरु, आचार्य, वृद्ध और ग्लानादि की प्रतिपत्ति-सेवा के लिए सदा उद्यत रहना, अर्थात् सेवा-शुश्रूषा के अतिरिक्त अन्न और औषधि आदि के द्वारा उनकी परिचर्या में प्रवृत्त रहना अभ्युत्थान कहलाता है। यद्यपि छन्दना में ही अभ्युत्थान का अन्तर्भाव हो सकता है, तथापि दोनों में कुछ अन्तर है। यथा-छन्दना सामाचारी में तो भिक्षावृत्ति से लाए हुए द्रव्य की निमंत्रणा मात्र होती है और अभ्युत्थान सामाचारी में गुरुजनों की सेवा में उद्यत रहने का आदेश है। दशवीं सामाचारी उपसम्पत् नाम की है। उसका अर्थ यह है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र विधायक सद्ग्रन्थों के अध्ययनार्थ किसी अन्य आचार्यादि के पास स्थिति करना और उनसे यह कह देना कि मैं अमुक कालपर्यन्त आपकी सेवा में स्थिति करूंगा। इस कथन से गच्छों का पारस्परिक प्रेम और सहानुभूति भी प्रदर्शित होती है, जो कि सर्व प्रकार से उपादेय और स्पृहणीय है। इसके अतिरिक्त-'गुरुपूया-गुरुपूजायाम्' दुपंचसंजुत्ता-द्विपंच संयुक्ता' ये दोनों प्रयोग आर्ष समझने चाहिएं, और 'पवेइया' भी आर्ष प्रयोग ही है। अब ओघ-सामाचारी के विषय में कहते हैं, यथा पुविल्लम्मि चउब्भाए, आइच्चम्मि समुट्ठिए । भण्डयं पडिलेहित्ता, वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥८॥ पूर्वस्मिन् चतुर्भागे, आदित्ये समुत्थिते ।' भाण्डकं प्रतिलेख्य, वन्दित्वा च ततो गुरुम् ॥ ८ ॥ पदार्थान्वयः-पुव्विल्लम्मि-पहले, चउब्भाए-चतुर्थभाग में, आइच्चम्मि-आदित्य के, समुट्ठिए-उदय होने पर, भण्डयं-भंडोपकरण को, पडिलेहित्ता-प्रतिलेखन करके, य-और, गुरु-गुरु को, वन्दित्ता-वन्दना करके, तओ-प्रतिलेखनाऽनन्तर। मूलार्थ-दिन के प्रथम चतुर्थभाग में सूर्य के उदित होने पर भाण्डोपकरण की प्रतिलेखना करके-तदनन्तर गुरु को वन्दना करके-हाथ जोड़कर पूछे-(यह अगली गाथा के साथ अन्वय करके अर्थ करना)। टीका-पूर्व की गाथाओं में दशविध सामाचारी का वर्णन किया गया है, अब प्रस्तुत गाथा में ओघ सामाचारी का निरूपण करते हैं। दिन के चार भाग, चार पहर कहलाते हैं। एक भाग या पहर आठ घड़ी का होता है, इस प्रकार विभागों की कल्पना करने पर प्रथम पहर का चतुर्थ भाग दो घड़ी मात्र होता है। तथा गाथा के पूर्वार्द्ध का यह अर्थ हुआ कि प्रथम के चतुर्थ भाग में सूर्य के उदित होने पर अर्थात् दो घड़ी प्रमाण सूर्य के उदय होने पर भंडोपकरण आदि की प्रतिलेखना करे। इसी समय को जैन उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२४] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं ,
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy