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________________ अह बम्भचेरसमाहिठाणाणाम - सोलसमं अज्झयणं अथ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं नाम षोडशमध्ययनम् .. गत पन्द्रहवें अध्ययन में साधु के गुणों का वर्णन किया गया है परन्तु वे गुण, अपनी स्थिति के लिए सब से प्रथम ब्रह्मचर्य की अपेक्षा रखते हैं। अतः इस सोलहवें अध्ययन में ब्रह्मचर्य का ही विविध दृष्टियों से, निरूपण किया जाता है, जिसका आदिम सूत्र यह है सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सुच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुतिदिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा। श्रुतं मया आयुष्मन्! तेन भगवतैवमाख्यातम्-इह खल्लु स्थविरैर्भगवद्भिर्दश ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य बहुलसंयमो बहुलसंवरो बहुलसमाधिगुप्तो गुप्तेन्द्रियो गुप्तब्रह्मचारी सदाऽप्रमत्तो विहरेत् ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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