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________________ ११३६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [पञ्चविंशाध्ययनम् तुम्भे जइया जन्नाणं, तुब्भे वेयविऊ विऊ । जोइसंगविऊ तुम्भे, तुम्भे धम्माण पारगा॥३८॥ यूयं यष्टारो यज्ञानां, यूयं वेदविदो विदः । ज्योतिषाङ्गविदो यूयं, यूयं धर्माणां पारगाः ॥३८॥ पदार्थान्वयः-तुम्भे-आप जन्नाणं-यज्ञों के जइया-यजन करने वाले हैं तुब्मे-आप वेयविऊ-वेदों के वेत्ता हैं विऊ-विद्वान् हैं तुम्मे-आप जोइसंगज्यौतिषांग के विऊ-पण्डित हैं तुम्मे-आप धम्माण-धर्मों के पारगा-पारगामी हैं। मूलार्थ हे भगवन्, आप यज्ञों के करने वाले हैं। आप वेदों के ज्ञातावेदविद्या के पण्डित हैं। आप ज्यौतिषांग के वेत्ता और धर्मों के पारगामी हैं । टीका-कोई २ ऐसा पाठ भी पढ़ते हैं-'संजाणंतो तओ तं तु'-जानते हुए कि यह मेरा भाई है। तब विजयघोष ने जयघोष मुनि के सम्बन्ध में इस प्रकार कहा-हे भगवन् ! वास्तव में आप ही यज्ञों के याजक हैं, आप ही वेदविद्या के पूर्ण ज्ञाता है, अर्थात् आप ही वेदों के पूर्ण विद्वान् हैं तथा ज्यौतिषांग के पूर्ण ज्ञाता भी आप ही हैं। और धर्मों-सदाचारसम्बन्धी नियमों के पारगामी भी आप ही हैं । तात्पर्य यह है कि जैसे आप सर्वशास्त्रों में निष्णात हैं, वैसे ही आप चरित्र के पालन में भी सर्वथा परिपूर्ण हैं अर्थात् जहाँ आप ज्ञानवान् हैं वहाँ आप चारित्रवान् भी हैं। यहाँ पर इतना ध्यान रहे कि यह सद्भूत गुणों की स्तुति है, इसमें अतिशयोक्ति नहीं है। अब फिर इसी विषय में कहते हैंतुब्भे समत्था उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य। तमणुग्गहं करेहम्ह, भिक्खणं भिक्खु उत्तमा ॥३९॥ यूयं समर्थाः समुद्धर्तु, परमात्मानमेव च। तदनुग्रहं कुरुतास्माकं, भैक्ष्येण भिक्षुत्तमाः ॥३९॥ ___पदार्थान्वयः-तुम्मे-आप समत्था-समर्थ हैं उद्धत्तुं-उद्धार करने में परम्-पर का य-और अप्पाणम्-अपने आत्मा का एव-पादपूर्ति में है तम्-इसलिए
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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