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________________ १०१८ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ त्रयोविंशाध्ययनम् मूलार्थ - हे भगवन् ! आप यथा इच्छा -अपनी इच्छा के अनुसार पूछें, यह गौतम ने केशी के प्रति कहा । तदनन्तर अनुज्ञा मिल जाने पर गौतम के प्रति केशी मुनि ने इस प्रकार कहा । टीका - जब केशीकुमार ने गौतम स्वामी से प्रश्न पूछने की अनुज्ञा प्राप्त कर की अर्थात् उन्हों ने प्रश्न पूछने की अनुमति देते हुए उन से यह कह दिया कि आप बड़ी खुशी से जो चाहे सो पूछ सकते हैं तब केशीकुमार ने उनके प्रति इस प्रकार कहा यह इस गाथा का संकिलत भावार्थ है । प्रस्तुत गाथा में तथा इससे पहली गाथा में प्रश्नोत्तर के प्रस्ताव पर उक्त दोनों महापुरुषों का जो वार्तालाप हुआ है उसमें अर्थात् परस्पर के वार्तालाप में भाषा समिति का कितनी सुन्दरता से उपयोग किया गया है यह बात सब से अधिक ध्यान देने के योग्य है, परस्पर के वार्तालाप में कितना विनय, कितना माधुर्य और कितनी सरसता है यह बात सहज ही ध्यान आ सकती है। धर्मचर्चा के जिज्ञासुओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिल सकता ' है। इसके अतिरिक्त गाथा के द्वितीय पाद में 'गोयमं' यह प्रथमा विभक्ति के स्थान : पर द्वितीया का प्रयोग सुप् व्यत्यय से हुआ है I • अनुज्ञा प्राप्त करने के पश्चात् गौतम स्वामी के प्रति केशीकुमार श्रमण ने जो कुछ कहा अब उसका वर्णन करते हुए कहते हैं— जामोय जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ । देसिओ चातुर्यामश्च यो धर्मः, योऽयं देशितो वज्रमाणेण, पासेण य महामुनी ॥ २३ ॥ पंचशिक्षितः । वर्धमानेन, पार्श्वेण च महामुनिना ॥ २३ ॥ पदार्थान्वयः - चाउञ्जामो - चतुर्यामरूप जो-जो धम्मो - धर्म य-और जोजो इमो - यह पंचसिक्खियो- पाँच शिक्षारूप धर्म देसिओ - उपदेश किया है वद्धमाणेण - वर्द्धमान स्वामी ने य-और पासेय- पार्श्वनाथ महामुखी - महामुनि ने । मूलार्थ - वर्द्धमान खामी ने पाँच शिचारूप धर्म का कथन किया है और महामुनि पार्श्वनाथ ने चतुर्यामरूप धर्म का प्रतिपादन किया है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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