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________________ त्रयोविंशाध्ययनम् ] . हिन्दीभाषाटीकासहितम्। [१०१७ .., मूलार्थ-केशीकुमार गौतम मुनि के प्रति कहने लगे कि हे महाभाग! मैं तुम से पूछता हूँ । केशीकुमार के इस प्रकार कहने पर गौतम मुनि ने इस प्रकार कहा। टीका-जिस समय तिन्दुक बन का सभा-मण्डप मनुष्यों और देव दानवों से भर गया और सब का चित्त उक्त दोनों महापुरुषों के विचार सुनने को उत्कंठित हो रहा था उस समय केशीकुमार ने प्रश्न पूछने की इच्छा प्रकट करते हुए गौतम स्वामी को सम्बोधित करके कहा कि हे महाभाग अर्थात् अतिशय से युक्त, अचिन्त्य शक्तिवाले महापुरुष ! क्या मैं इस समय आप से कुछ पूछ सकता हूँ ? इस प्रकार कहते हुए केशीकुमार के प्रति गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा । तात्पर्य यह है कि केशीकुमार के आशय को समझते हुए गौतम स्वामी उसके प्रति इस प्रकार बोले । इसके अतिरिक्त प्रस्तुत गाथा में प्रश्न करने की विधि का भी बड़ी सुन्दरता से निदर्शन करा दिया गया है । जैसेकि प्रश्न-कर्ता को उचित यह है कि वह प्रश्न करने से पहले जिसके प्रति वह प्रश्न करना चाहता है अथवा जिससे वह प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने की जिज्ञासा रखता है-उससे अनुमति—आज्ञा प्राप्त कर ले और उसके बाद प्रश्न करे । इससे किसी प्रकार के मनोमालिन्य की सम्भावना को अवकाश नहीं रहता। इस प्रकार केशीकुमार के द्वारा प्रश्न पूछने की अनुमति प्राप्त करने के प्रस्ताव में उनके प्रति गौतम स्वामी ने जो कुछ कहा अब उसका उल्लेख करते हैंपुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते, केसिं गोयममब्बवी । तओ केसी अणुनाए, गोयमं इणमब्बवी ॥२२॥ पृच्छतु भदन्त ! यथेष्टं ते, केशिनं गौतमोऽब्रवीत् । ततः केशी अनुज्ञातः, गौतममिदमब्रवीत् ॥२२॥ · पदार्थान्वयः-भन्ते-हे भगवन् ! जहिच्छं-यथा इच्छा ते-आपकी प्रच्छपूछे केसिं-केशी के प्रति गोयमं-गौतम अब्बवी-बोले तओ-तदनन्तर केसी-केशीकुमार अणुमाए-आज्ञा के मिल जाने पर गोयम-गौतम के प्रति इणं-इस प्रकार अब्ववी-बोले। ..
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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