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________________ १००४ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [प्रयोविंशाध्ययनम् कोष्ठकं नामोद्यानं, तस्मिन्नगरमण्डले । प्रासुके . शय्यासंस्तारे, तत्र वासमुपागतः ॥८॥ ___ पदार्थान्वयः-कोद्रगं-कोष्टक नाम-नाम वाला उजाणं-उद्यान तम्मीउस नयर-नगर के मंडले-समीप था फासुए-प्रासुक सिज-शय्या और संथारेसंस्तारक पर तत्थ-उस उद्यान में वासं-निवास को उवागए-प्राप्त किया । मूलार्थ—उस नगर के समीपवर्ति कोष्टक नाम के उद्यान में शुद्ध-निर्दोष वस्ती और संस्तारक-फलकादि पर वे विराजमान हो गए। टीका-श्रावस्ती नगरी में पधारने के अनन्तर श्रीगौतमस्वामी उसके समीपवर्त्ति एक कोष्टक नाम के उद्यान में पहुंचे। वहाँ पर निवास के लिए निर्दोषजीवादि रहित वस्ती और फलकादि की वहाँ के स्वामी से आज्ञा लेकर उस उद्यान में वे विराजमान हो गये । प्रासुक–निर्दोष, शय्या-वस्ती-निवास योग्य भूमी, संस्तारक—शिला पट्टक अथवा तृण आदि लेने योग्य वस्तु । तात्पर्य यह है कि इन सब उपयोगी वस्तुओं को वहाँ के स्वामी की आज्ञा से ग्रहण किया। साधु को बिना आज्ञा से किसी भी वस्तु के ग्रहण करने का अधिकार नहीं है। यदि वह बिना आज्ञा के ग्रहण कर लेवे तो उसके तृतीय व्रत में—अचौर्य व्रत में-दोष आता है। श्रावस्ती नगरी के समीपवर्ति भिन्न २ दो उद्यानों में श्रीकेशीकुमार और गौतम स्वामी ये दोनों ही ऋषि अपने २ शिष्य परिवार के साथ विराजमान हो गये और दोनों ही वहाँ पर विचरने लगे । निम्नलिखित गाथा में इसी आशय को व्यक्त करते हुए कहते हैंकेसीकुमार समणे, गोयमे य महायसे । उभओवि तत्थ विहरिंसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥९॥ केशीकुमार श्रमणः, गौतमश्च महायशाः। उभावपि तत्र व्यहार्टाम्, आलीनौ सुसमाहितौ ॥९॥ पदार्थान्वयः-केसीकुमार-केशीकुमार समणे-श्रमण य-और गोयमे गौतम महायसे-महान् यशवाले उभओवि-दोनों ही तत्थ-उस श्रावस्ती नगरी में विहरिंसुविचरने लगे अल्लीणा-इन्द्रियों को वश में रखनेवाले सुसमाहिया-समाधि से युक्त ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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