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________________ प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [१००३ अब इनके विद्या और चारित्र के सम्बन्ध में तथा शिष्य-समुदाय और देश-यात्रा के विषय में उल्लेख करते हैं यथाबारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, सेवि सावत्थिमागए ॥७॥ द्वादशाङ्गविद् बुद्धः, शिष्यसंघसमाकुलः । ग्रामानुग्रामं रीयमाणः, सोऽपि श्रावस्तीमागतः ॥७॥ पदार्थान्वयः-बारसंग-द्वादशांग के विऊ-वेत्ता बुद्धे-तत्त्व के ज्ञाता सीससंघ-शिष्य समुदाय से समाउले-व्याप्त गामाणुगाम-प्रामानुग्राम-एक से दूसरे प्राम में रीयन्ते-विचरते हुए सेवि-वह भी सावस्थिम्-श्रावस्ती नगरी में आगए-पधार गये। ___ मूलार्थ-द्वादशांग वाणी के जाननेवाले और तत्त्व के ज्ञाता शिष्य . समुदाय से आकीर्ण, ग्रामानुग्राम विचरते हुए वह भी श्रावस्ती नगरी में पधारे । टीका-प्रस्तुत गाथा में गौतम स्वामी के विद्या और चारित्र का उल्लेख करने के साथ २. उनकी प्राभाविकता का भी दिग्दर्शन करा दिया गया है । गौतम स्वामी द्वादशांग वाणी के पारगामी तथा तत्त्व के यथार्थ वेत्ता थे और उनका · शिष्य-समुदाय भी पर्याप्त था। वे ग्रामानुपाम अपने धर्मोपदेश के द्वारा अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुए उसी श्रावस्ती नगरी में पधारे, जहाँ पर कि श्रीकेशीकुमार श्रमण विराजमान थे। यह इस गाथा का संक्षिप्त भावार्थ है । 'बुद्ध' शब्द का अर्थ है-हेय, ज्ञेय और उपादेय के जाननेवाले और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इस त्रिपदी के द्वारा पदार्थों के स्वरूप को यथावत् समझने और समझानेवाले । ___श्रावस्ती में आने के बाद वे जिस स्थान पर विराजमान हुए अब उसका उल्लेख करते हैं यथा-- कोट्ठगं नाम उजाणं, तम्मी नयरमण्डले। फासुए सिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥८॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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