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________________ विंशतितमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६१७ एवमुग्रो दान्तोऽपि महातपोधनः, __महामुनिर्महाप्रतिज्ञो महायशाः । महानिर्ग्रन्थीयमिदं महाश्रुतं, स कथयति महता विस्तरेण ॥५३॥ ___ पदार्थान्वयः-एव-इस प्रकार से-वह-अर्थात् मुनि ने श्रेणिक राजा के पूछने पर इणं-यह महासुयं-महाश्रुत काहए-कथन किया है महया वित्थरेणंमहान् विस्तार से—वह मुनि कैसे हैं—उग्ग-प्रधान दन्ते-दान्त ऽवि-पूरणार्थक है महातवोधणे-महान तपस्वी महामुणी-महामुनि महापइण्णे-महती प्रज्ञा वाले और महायसे-महान यशस्वी महानियण्ठिजम्-महानिर्ग्रन्थीय इणं-यह महासुयं-महाश्रुत उन्होंने काहए-कथन किया महया वित्थरेणं-बड़े विस्तार से। ___ मूलार्थ इस प्रकार उदग्र, दान्त, महातपस्वी, महामुनि, दृढप्रतिन्न और महान् यशस्वी उस अनाथी मुनि ने इस महानिर्ग्रन्थीय महाश्रुत को महाराजा श्रेणिक के प्रति कहा। टीका-श्रीसुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू ! इस प्रकार महाराजा श्रेणिक के पूछने पर उक्त मुनिराज ने इस महानिर्ग्रन्थीय महाश्रुत नाम के अध्ययन का विस्तारपूर्वक कथन किया। वे मुनिराज कर्मशत्रुओं को जीतने से उदग्र, दान्त और महान तपस्वी कहलाये इसी लिए वे दृढ प्रतिज्ञा वाले और महान यश वाले हुए । तात्पर्य यह है कि महाराजा श्रेणिक के प्रभ करने पर महामुनि अनाथी ने उनके उत्तर में इस महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन का वर्णन किया, जिससे कि राजा का संशय दूर हो गया। इसके अतिरिक्त उक्त मुनि के लिए जो उदन, दान्त, महामुनि और महातपोधन आदि विशेषण दिये गये हैं, उनका अभिप्राय उक्त मुनि को आप्त बतलाना है। वह जिनेन्द्र भगवान् के कथन किये हुए का अक्षरशः अनुवादरूप होने से सब के लिए हितकर अतएव उपादेय है, यह भी पूर्व में प्रतिपादन किया जा चुका है । 'काहए-कथयति' यह वर्तमान काल की क्रिया का प्रयोग तत्काल की अपेक्षा से समझना चाहिए। इसके अनन्तर फिर क्या हुआ ? अब इसी विषय में कहते हैं
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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