SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६० ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ अष्टादशाध्ययनम् अपनी समृद्धि का व्यर्थ ही अभिमान क्यों किया । अस्तु, मैं आज इसके अभिमान को चूर करूंगा । तब शक्र ने वैक्रिय लब्धि के द्वारा अनेकानेक हस्तियों पर अनेक प्रकार की रचनायें करके राजा को व्यामोहित कर दिया । परन्तु इधर महाराजा दशार्णभद्र भी बड़ा ही दृढ़प्रतिज्ञ था । उसने भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण कर ली । तब इन्द्र ने उनके चरणों में बन्दना की और अपने अपराध की क्षमां मांगी । इधर तप और संयम का भली भाँति आराधन करते हुए दशार्णभद्र मुनि मोक्ष को प्राप्त हुए । इस प्रकार से दशार्णदेश के राज्य को छोड़कर इन्द्र द्वारा प्रेरित . किये जाने पर महाराजा दशार्णभद्र दीक्षित हुए । अब प्रत्येकबुद्धों के विषय में कहते हैं नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ । जहित्ता रज्जं वइदेही, सामण्णे पज्जुवट्टिओ ॥४५॥ नमिर्नामयत्यात्मानं साक्षाच्छक्रेण चोदितः । पर्युपस्थितः ॥४५॥ " त्यक्त्वा राज्यं वैदेही, श्रामण्ये पदार्थान्वयः – नमी - नमि राजा ने अप्पा - आत्मा को नमेह नम्र किया सक्ख - प्रत्यक्ष सक्केण शक्र के द्वारा चोइओ - प्रेरित किये जाने पर जहित्ता छोड़कर वइदेही - विदेह देश के रज्जं - राज्य को सामण्णे - श्र - श्रमण भाव में संयम भाव में पज्जुवडिओ - - सावधान हुआ । मूलार्थ - नमि राजा ने इन्द्र के द्वारा प्रत्यक्षरूप से प्रेरित किये जाने पर विदेह देश के राज्य का परित्याग करके संयमवृत्ति को धारण किया और अन्त में वह मोक्ष को गए । टीका- - इस गाथा में नमिराजर्षि का उल्लेख किया है । इसका सम्पूर्ण वृत्तान्त अर्थात् अन्तःपुर में होने वाले कंकणों के शब्दों को सुनकर वैराग्य उत्पन्न होना तथा जातिस्मरण ज्ञान के अनन्तर दीक्षा के लिए तैयार होने पर ब्राह्मण के वेष में आकर इन्द्र का सम्भाषण करना इत्यादि समस्त वर्णन प्रस्तुत सूत्र के नवमें अध्ययन में आ चुका है । राजर्षि नमि भी अपने समय के सम्राट् समूह में मुख्य थे । इन्होंने सांसारिक I
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy