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________________ अष्टादशाध्ययनम् ].. हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [७५३ सनत्कुमारो मनुष्येन्द्रः, चक्रवर्ती महर्द्धिकः। पुत्रं राज्ये स्थापयित्वा, सोऽपि राजा तपोऽचरत् ॥३७॥ ___पदार्थान्वयः—सणंकुमारो-सनत्कुमार मणुस्सिन्दो मनुष्यों का राजा चक्कवट्टी-चक्रवर्ती महड्डिओ-महती ऋद्धि वाला रजे-राज्य में पुत्तं-पुत्र को ठवित्तास्थापन करके सोऽवि-वह भी राया-राजा तव-तप को चरे-आचरण करने लगा। मूलार्थ—वह महासमृद्धिशाली सम्राट् सनत्कुमार भी पुत्र को राज्य में स्थापन करके तप का आचरण करने लगा। टीका-कहते हैं कि चक्रवर्ती सनत्कुमार का रूप लावण्य बहुत ही अद्भुत था । शक्रेन्द्र ने भी इनके रूप की प्रशंसा की थी। अन्य देवता लोग इन्द्र महाराज के उक्त कथन में विश्वास न रखते हुए, इस लोक में वृद्ध ब्राह्मणों का रूप धारण करके उक्त चक्रवर्ती के दर्शन करने को आये । परन्तु चक्रवर्ती को अपने रूप का कुछ विशेष गर्व हो गया। उन्होंने दर्शनार्थ आये हुए देव-वित्रों से कहा कि आपने मेरे दर्शन राजसभा में करने, अभी तो मैं स्नानागार में हूँ । उन्होंने ( देवों ने) इस बात को स्वीकार किया । स्नानादि आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर जब वह सम्राट् अपने सिंहासन पर आकर बैठे और उन देव-ब्राह्मणों को बुलाया तब पूर्वोक्त अशुभ कर्मों के प्रभाव से चक्रवर्ती को १६ रोग उत्पन्न हुए । शरीर की इस दशा पर विचार करते हुए वे संसार के सारे वैभव को छोड़कर दीक्षित हो गए और अन्त में सारे कर्मों का समूल घात करके मोक्ष को प्राप्त हुए। अब पांचवें चक्रवर्ती का वर्णन करते हैंचइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महडिओ। सन्ती सन्तिकरो लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥३८॥ त्यक्त्वा भारतं वर्ष, चक्रवर्ती महर्द्धिकः । शान्तिः शान्तिकरो लोके, प्राप्तो गतिमनुत्तराम् ॥३८॥ पदार्थान्वयः--चहत्ता-छोड़कर भारहं वासं-भारतवर्ष को चक्कवट्टी
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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