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________________ ७५२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- . [ अष्टादशाध्ययनम् पर भी मनुष्य को संयोग वियोग रूप कर्मों के रस का अनुभव करना पड़ता है सामान्य मनुष्य की तो गणना ही क्या है ? इसलिए विचारशील पुरुष को कर्मबन्धन से मुक्त होने का ही प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि व्याख्याप्रज्ञप्ति में लिखा है कि- 'दुक्खीणंभंते दुक्खेण फुडे' इत्यादि-अर्थात् कर्मविशिष्ट जीवों को ही दुःख होता है इत्यादि। अब तृतीय चक्रवर्ती के नाम का प्रस्तुत विषय में उल्लेख करते हैंचइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महडिओ। पव्वज्जमन्भुवगओ , मघवं नाम महाजसो ॥३६॥ त्यक्त्वा भारतं वर्ष, चक्रवर्ती . महर्द्धिकः । प्रवज्यामभ्युपगतः , मघवा नाम महायशाः ॥३६॥ ___पदार्थान्वयः-चइत्ता-छोड़कर भारहं वासं-भारतवर्ष को चक्कवट्टी-चक्रवर्ती महडिओ-महाऋद्धि वाला पव्वजम्-दीक्षा को अब्भुवगओ-प्राप्त हुआ मघवं नाममघवा नाम वाला और महाजसो-महान् यश वाला। मूलार्थ-महान् यश और महा समृद्धि वाला मघवा नाम का चक्रवर्ती भारतवर्ष को छोड़कर प्रबजित हो गया अर्थात् उसने अपने महान् राज्य-वैभव को छोड़कर दीक्षा अंगीकार कर ली। • टीका-इस गाथा में तीसरे चक्रवर्ती के राजत्याग का वर्णन है । महान् यशस्वी और महान् समृद्धिशाली मघवा नाम के चक्रवर्ती इन सांसारिक विषयभोगों को छोड़कर दीक्षित हो गये । तात्पर्य कि इनको दुःख और घोर कर्मबन्ध का कारण समझ कर इनका त्याग करके मोक्ष की साधनभूत जो प्रव्रज्या है उसको उन्होंने स्वीकार किया। अंब चतुर्थ चक्रवर्ती के विषय में कहते हैंसणंकुमारोमणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महडिओ। पुत्तं रज्जे ठवित्ता णं, सोऽविराया तवं चरे ॥३७॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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