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________________ सप्तदशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [७०५ जे केइ उ पव्वइए, निद्दासीले पगामसो। भुच्चा पिच्चा सुहं सुवई, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥३॥ यः कश्चित् तु प्रवजितः, निद्राशीलः प्रकामशः। भुक्त्वा पीत्वा सुखं खपिति, पापश्रमण इत्युच्यते ॥३॥ ___ पदार्थान्वयः-जे-जो केइ-कोई उ-वितर्क में पव्वइए-प्रव्रजित हो गया है निदासीले-निद्राशील पगामसो-अत्यन्त निद्रालु भुच्चा-खाकर पिच्चा-पीकर सुहंसुखपूर्वक सुबई-सो जाता है पावसमणि त्ति-पापश्रमण इस प्रकार वुच्चईकहा जाता है। मूलार्थ-जो कोई प्रबजित होकर-दीक्षित होकर अत्यन्त निद्राशील है और खा पीकर सुख से सो जाता है, वह पापश्रमण कहलाता है। टीका-इस गाथा में पापश्रमण के लक्षण वर्णन किये गये हैं अर्थात् • पापश्रमण किसको कहते हैं, इसकी चर्चा की है। जैसे कोई पुरुष दीक्षाग्रहण करने के अनन्तर भी अत्यन्त निद्रालु बना हुआ है, तथा दधि ओदनादि को खाकर और तक्र आदि को पीकर अर्थात् नानाविध भोज्य और पेय पदार्थों का सेवन करके खूब आनन्दपूर्वक सोता हुआ अपनी आवश्यक क्रियाओं की भी उपेक्षा कर देता है, वह पापश्रमण कहा जाता है । तात्पर्य कि पापरूप क्रियाओं के द्वारा जिसकी लक्षणा–पहचानकी जाय, वह पापश्रमण है । यद्यपि यहाँ पर केवल 'निदासीले—निद्राशील' का प्रयोग ही पर्याप्त था तथापि 'पगामसो—प्रकामशः' का प्रयोग अत्यन्त निद्रालुता का बोध कराने के लिए किया गया है । जैसे कि उठाने पर भी जल्दी नहीं उठना तथा उठने पर भी आँखें मीचे रहना। ... ऐसा नहीं कि अनपढ़ ही पापश्रमण होते हैं किन्तु पढ़े हुए भी पापश्रमण कहे चा माने जाते हैं । तथाहि आयरियउवज्झाएहिं, सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिंसई बाले, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥४॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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