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________________ श्री समयसारनाटक. ३ए श्रर्थः-हवे संगतनी वात कहेजेः-ज्यारे घटमां सुबोध प्रकाशे बे, त्यारे ए रसस हित जे अने ए विरस बे. एवो विषय ममता नाव बे, ते सर्व नाश पामे. एनो हेतु ए बे के जे नव रस डे तेने एक नाव रसमांज लखे के जुवे, तेथी विरस नाव मटीने एकज रसमां श्रात्मानुं रहे थाय. ॥ ५॥ एम सर्व रसोमा गनित एक र समय थयलो एवो था समयसार नाटक नामे ग्रंथ श्री कुंदकुंदाचार्यजीए कह्यो, जेना अर्थ नावने सांजलता प्रमाणिक जीव डे ते मार्ग कुमार्गनो विचार समजे. ॥ ६ ॥ प्रथम जगतवासी जीवोने हितकारी कार्यनो ग्रंथ प्रवर्त्तमान थयो ते पठी अमृत चंद नामा आचार्य प्रगट्या तेणे था ग्रंथ अति श्रेष्ठ जाणीने श्रा ग्रंथनी टीका ब नावी, गांथानुं रहस्य लश्ने काव्य बंध कह्यो ते कहीएबीए. ॥ ७ ॥ श्री अमृतचं दजी एज ग्रंथनुं व्याख्यान करता सर्व विशुकि छार सुधी श्राव्या. श्रांही ग्रंथ सं पूर्ण थयो जाणी श्री अमृतचंद्र श्राचार्य नक्तिना वशथी ग्रंथy गुण ज्ञान करे बे. ॥ ॥ श्रा ग्रंथ अध्यात्म वाणीमा अनुत थयो, पण या ग्रंथने कोई विरला ज्ञान वंत पुरुष समके. या ग्रंथमां स्याहादनो अधिकार दे, ते अल्प बुकि स्थूलमतिने समजवो मुशकेल . तेथी ते स्याहादनो जो विस्तार करीये तो सारु.॥ नए॥जे थकी या ग्रंथ अति शोजा पामे एम विचारी था ग्रंथरूप मंदिर तेना उपर स्याहा दनो विस्तार करिये तो ते कलशरूप थाय. त्यारे महारा चित्तमां अमृत जेवा वचन गढो के० धारण थश्ने खुले. एम दोष रहितनी परे श्री अमृतचंद आचार्य बोले डे के ॥ए॥ श्री कुंदकुंदाचार्यना करेला नाटक ग्रंथमां जीव अजीव अव्यनो अधिकार कह्यो. हवे हुँ स्याछाद नयनी अवस्थानो छार कहुँबु, श्रने साध्य वस्तुनी अवस्था नो हार कडं. ॥ ए१ ॥ बाणुमां दोहरानो अर्थ सुखन डे ॥ ए५ ॥ अमृतचंद आ चार्य एवी कोमल वाणी बोल्या के अहो ! शिष्य! स्याछादनी कथा हुँ कहुंडं ते सां जलो. कोई अस्तिवादि तो एम कहे डे के जगत्मां जीव वस्तु , अने कोई नास्ति वादी कहे जे के, जगतमा जीव वस्तु नथी. ॥ ३॥ कोई अद्वैत वादी ब्रह्मने एक रूप कहेजे. कोई नैयायिक वैशेषिक जीवने अगणितपणे कहेजे. कोई बौधमतीने सीधे जीवने क्षणभंगुर कहेडे; कोई सांख्यमतीने सीधे जीवने अनंगज कहेले. ॥ ए ॥ अर्थ समजवाना मार्गने नय कहिए, ते समजवाना मार्ग अनंत बे; तेने लीधे नय पण अनंत कहिये; तेमां कोई नय कोई नयने मले नही, विरोधी बे. हवे श्रांही जे सर्व नयनुं साधन करे, एटले सर्व नयने साचा साधिने देखाडे, तेने स्याहादि जाणी ए. ॥ ए५ ॥ ते स्याछादनो अधिकार हवे ढुं सर्व कहुं बु. एज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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