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________________ ७३७ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. __ अर्थः- झानादिक गुणेकरी आत्म विजूषित देखिये त्यांतो शृंगार रस उपज्यो , अने श्रात्माने विष निर्जरा प्रमुखनो उद्यम देखिये त्यांतो उदार प्रधान वीर रस डे २, ज्यारे श्रात्माने उपशम रसनी रीते देखिये त्यारे करुणा रस जाणीए ३, ज्यारे एने अनुनवमां उत्साह अने सुख उपजे ने ते तो हैयामां हास्य रस उपजे ४, महा बलवान आठ कर्मना अनंत प्रदेशी दल ने तेनो दलन करतां देखीए तो त्यां श्रा स्मा रौद्र रसमय थई रह्यो ५, ज्यारे पुजलनुं स्वरूप विचारीये बीए त्यारे बिन त्स रस ले ६, ज्यारे श्रात्मा पोतानुं स्वरूप न जाणे अने कुंद फुःखदशामां पड्यो , त्यारे तो जय रसमा देखीए, अनंत वीर्यनुं ज्यारे चितवन करीए त्यारे तो श्रात्मा श्रद्जुत रस पामे ७, ज्यारे राग द्वेष निवारीने सहज वैराग्यने धुव के निश्चल धारे बे, त्यारे आत्मा शांत रसमय पामीए ए, ए नव प्रकारना नाव रसना विलास नो प्र काशतो ज्यारे घटमां सुबुद्धि प्रगट थाय त्यारेज थाय. ॥ ४ ॥ हवे कुंदकुंदाचार्यकृत या ग्रंथ ले तेनी स्तुति करे:-श्रथ ग्रंथ स्तुतिः॥ चोपाईः॥-जब सुबोध घटमें परगासे, तब रस बिरस विषमता नासे, नव रस लखे एक रसमांदी, ताते विरस नाव मिटि जांही. ॥५॥ दोहरा-॥सब रस गर्जित मूल रस, नाटक नाम गरंथ; जाके सुनत प्रवान जिय, समुके पंथ कुपंथ. ॥ ६॥ ॥चोपायः॥-वरते ग्रंथ जगत हित काजा, प्रगटे अमृतचंद मुनि राजा; तब तिन्ह ग्रंथ जानि अति नीका, रची बनाइ संसकृत टीका ॥ ७॥ दोहराः ॥-सर्व विशुद्धि छारलों, आए करत बखान; तब आचारज नक्तिसों, करे ग्रंथ गुन ज्ञान. ॥ ७ ॥ ॥ चोपाईः॥-अदतुत ग्रंथ अध्यातम बांनी, समुके कोऊ विरला ज्ञानी, यामे स्या दवाद अधिकारा, ताको जो कीजे विसतारा ॥ ए॥ तो गरंय अति शोना पावे वह मंदिर यह कलस कहावे, तब चित अमृत वचन गढखोले,अमृतचंद आचारज बोले गए॥ दोहरा.-॥ कुंदकुंद नाटक विषे, कह्यो दरव अधिकार, स्यादवादने साधि मे, कहों अवस्था हार ॥ १ ॥ कहों मुकति पदकी कथा, कहों मुक्तिको पंथ, जैसे घृत कारज जहां, तहों कारन दधिपंथ ॥ ए२ ॥ अर्थ स्पष्ट ।। ॥चोपाई॥-अमृतचंद बोले मृदु बानी, स्यादवादकी सुनो कहानी, कोऊ कहै जीव जगमांहीं, कोऊ कहै जीव है नाही॥ ए३ ॥ दोहराः॥-एक रूप कोऊ कहै, कोऊ अगनित अंग; बिन नंगुर कोऊ कहै, कोऊ कहै अनंग ॥ ए४ ॥ नय अनंत श्व विधि कही, मिले न काह कोश, जो सब नयसाधन करे, स्यादवाद है सोश ॥ ए५ ॥ स्यादवाद अधिकार अब, कहों जैनको मूल, जाके जाने जगत जन, लहै जगत जलकूल ॥ए६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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