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________________ श्री समयसारनाटक. ६८३ ते मिठाईनी ऊपर माखीनी पेठे टोलानो नानपाट थई रहे तेम परिवारनो घेरोटे, एवं तां जगवासी जीव उदास थतो नयी. वास्तविक रीते तो जगत्ने विषे सा ताज बे, एक क्षणमात्र पण साता नथी. ॥ ८२ ॥ ॥ दोहाः ॥ - यह जगवासी यह जगत्, इनसों तोहि न काज; तेरे घटमें जग वसै, तामें तेरो राज ॥ ८३ ॥ अर्थ :- ए जे पूर्वे खाण्या एवा जगत्वासी लोक बे, घने ए लोकोनो ज्यां वास बे, तेने जगत् जावं, ए साथ संबंध राखवानुं तारुं काम नथी, पण तारा घटनेविषे ज जगत्नो वास बे, घने ते जगत्मां तारुं राज्य बे ॥ ८३ ॥ पेढे: दवे जे पिं ते ब्रह्मांडे एवात साची बे, एवं सिद्ध करी पिंड ब्रह्मां वर्णनं: ॥ सवैया इकतीसाः॥ - यादी नर पिंक में विराजे त्रिभुवन थिति, याहि में त्रिविध परिणाम रूप सृष्टि है; याहि में करमकी उपाधि दुःख दावानल, याहि में समाधि सुख बारिकी वृष्टि है; यामें करतार करतुति याहिमे विभूति, यामें जोग याही में वियोग या घृष्टि है, या हिमें विलास सब गर्मित गुप्तरूप, ताहिकों प्रगट जाके अंतर सुदृष्टि है. अर्थः- मनुष्य पिंडने विषे कटीनी नीचे पाताल लोकबे, नानि ते तिर्यक् लोकबे, ते उपर उई लोकबे, एवी त्रिभुवननी स्थिति जाणवी, छाने एनेविषेज कईक परि णाम उपजे बे ने कईक नाश पामे बे, ने कईक स्थिर बे, एवी विविध सृष्टि बनी रही बे; ने एज पिंडमां श्रात्माने कर्मनी उपाधि वलगी बे, तेज दुःखकारी दावानल के० अमिनो समूह लाग्यो बे; अने एज पिंडमां कोईबारे समाधि सुख वेडे तेज वाद लनी वृष्टि जावी. ते दावानल उपर मेघनी वृष्टि बे, एज पिंडमां कर्मनो कर्ता पुरुष बे, एज पिंडमां कर्त्तानी क्रिया बे; ए पिंकमांज विनूति के० ज्ञानादिक संपत्ति बे, एज पिंगमां कर्मनो जोग ने कर्मनो वियोग बे ने एज पिंगमां श्रात्मानुं धृष्टके दलन जे शुभाशुभ गुणोमां घसनाई रहेवुं ते बे; ए रीते ए पिंगमां गर्जित के० मध्य नागमां गुप्तरूपे सर्व विलास बे. पण जेना अंतर्मा सुदृष्टिनो प्रकाश बे, तेने सर्व विलास प्रत्यक्षपणे जपाय बे ॥ ८४ ॥ हवे ए वानो उपदेश गुरु कहे बे:- अथ गुरूपदेश कथनं: ॥ सवैया तेईसाः॥ - रे रुचिवंत पचारि क है गुरु, तुं छापनो पद बूजत नांही; खोज दिये निज चेतन लबन, है निजमें निज गुरुत नांही; सिद्ध सुबंद सदा प्रति उऊल मायाके फंद रूजत नांही; तोर सरूप न डुंदकि दोहिमें तो हिमं है तुहि सूक्त नांही ॥ ८५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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