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________________ जैन आगम : एक परिचय ] प्रलम्ब सम्बन्धी हैं । श्रमण- श्रमणियों को अपक्व तालफल अथवा तालमूल नहीं लेना चाहिए आदि । मासकल्प सम्बन्धी नियमों में श्रमण- श्रमणियों के एक स्थान पर ठहरने आदि की मर्यादा बतायी गयी है । इसी सन्दर्भ में ग्राम, नगर, खेट, आदि की परिभाषा भी बतायी गयी है। रात्रिविश्राम आदि के नियम भी दिये गये हैं । विहार क्षेत्र की मर्यादा भी निश्चित की गयी है । ५७ दूसरे उद्देशक में श्रमण- श्रमणियों के ठहरने योग्य आश्रयस्थान का वर्णन है । तीसरे उद्देशक में बताया गया है कि श्रमणों को श्रमणियों के उपाश्रय में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार श्रमणियाँ भी श्रमणों के उपाश्रय में न रहें । चौथे उद्देशक में अब्रह्मसेवन और रात्रिभोजन आदि व्रतों में दोष लग जाने पर प्रायश्चित का विधान है । इसी उद्देशक में आहार ग्रहण करने के नियम, विहार के नियम और मृत श्रमणश्रमणी की अन्तिम क्रिया के सम्बन्ध में निर्देश हैं । पाँचवें उद्देशक में आहार आदि के खाने पर विशेष चिन्तन है । छठे उद्देशक में श्रमणों की वाक्यशुद्धि पर विशेष बल दिया गया है । महत्व - प्रस्तुत आगम में श्रमणों के जीवन और व्यवहार विषयक अनेक तथ्यों का सूक्ष्म विवेचन है । यही इस आगम की विशेषता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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