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________________ ३८७ प्रियंगुमंजरी के कर्णावतंश बनाना, नागवल्ली के पत्तों के साथ ताम्बूल लगाना (स०पू०८८०-८१), विविध प्रकार के चित्र बनाना, (स०पू० ८९), प्रहेलिका कहना (स०पू० ७४४ ), समस्या पूर्ति करना (स०पू० ७५२), काव्य रचना करना (स०पू० ८६), वीणा वादन (स० पृ० ३८२), सुन्दर कथाएं कहना-सुनना (स०पु० ८४), शिकार खेलना (स० पृ० १७४ तथा ३२५) एवं बाह याली - राजप्रासाद से बाहर घोड़े दौड़ाने के मैदान में घोड़े पर सवार होकर भ्रमण (स० पृ० १६) करना बताया हैं । मनोविनोद के लिए संगीत का प्रायोजन विशेष रूप से होता था । वाद्य में पट-ढोल, मृदंग, वंश, कांस्यक - कांसा का वाद्य (स० पू० १० ), तन्त्री -- तांतं से बने वाद्य का नामोल्लेख किया है । मनोविनोद के लिए उत्सव विशेष भी सम्पन्न किये जाते थे । उत्सव और गोष्ठियाँ हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में कई प्रकार के सामाजिक उत्सवों का उल्लेख मिलता हैं । इनमें निम्न उत्सव महत्वपूर्ण हैं : · -- कात्तिक पूर्णिमा महोत्सव (स० पृ० ६५४ ) - - इस उत्सव को केवल स्त्रियां सम्पन्न करती थीं। इसमें पुरुषों को नगर के बाहर कर दिया जाता था । उत्सव मध्याह्न से प्रारम्भ होता था और रात भर सम्पन्न किया जाता था । नृत्य, गायन, वादन आदि का श्रायोजन रहता था । मदन- महोत्सव (स०पू० ५३, ४६६ ) - - इस उत्सव का प्रचार प्राचीन भारत मँ प्रत्यधिक था । यह उत्सव चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को प्रायः सम्पन्न किया जाता था । इस तिथि को मदन त्रयोदशी भी कहा गया है । भविष्यत्पुराण में बताया गया है कि शिव ने मदन को भस्म करने के उपरान्त गौरी के आग्रह करने पर एक दिन के लिए अनंग को शरीर के साथ श्राविर्भूत होने का आशीर्वाद दिया था। अतः वासन्ती त्रयोदशी मदन महोत्सव का दिन निश्चित हुआ था । रत्नावली नाटिका में भी इस महोत्सव का वर्णन आया है । बताया गया है कि वासवदत्ता अशोक वृक्ष के तले पूजा करती थी । शाकुन्तल नाटक के छट्ठे अंक में भी मदन महोत्सव का उल्लेख श्राया है । पश्चात्ताप से सन्तप्त दुष्यन्त ने मदन महोत्सव रोकने के लिए चूत मंजरी चयन का निषेध किया था । मालती - माधव, वासवदत्ता आदि ग्रन्थों में भी मदन महोत्सव का वर्णन मिलता है । हरिभद्र के वर्णन के अनुसार श्राश्रमंजरी के श्राने पर उद्यान रक्षक राजा को मंजरी भेंट करता था । राजा नगर भर में घोषणा कराके नागरिकों को सार्वजनिक उद्यान में उत्सव मनाने का आदेश देता था। सभी लोग विभिन्न वर्ग और जाति के व्यक्ति नृत्य, गीत आदि के साथ नाटक, अभिनय आदि का आयोजन करते थे । नगर की सड़कें सुगन्धित जल से सिंचित कराई जाती थीं । केशर और कस्तूरी के जल का छिड़काव किया जाता था । राजमार्ग पर पुष्प विकीर्ण किये जाते थे । विचित्र वेश बनाये युवकों की टोली नगर की सड़कों पर बहुत लोगों से प्रशंसनीय वसन्त क्रीड़ा का अनुभव करती हुई विचरण करती थी । चर्चरी श्रृंगारिक जीवों के साथ नृत्य करती हुई विभिन्न युवकों की टोलियां विचरण करती थीं। उद्यान में पहुँचकर लोग विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएं करते थे। राज-परिवार में भवनोद्यान के वृक्षों पर झूले डाले जाते थे और युवतियां झूलती थीं । मदन महोत्सव स्त्री-पुरुष दोनों ही सम्पन्न करते थे । मंदन - महोत्सव में ही कुसुमावली और सिंहकुमार ने परस्पर में अपना हृदय अर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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