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________________ सर्वतोभद्र प्रासाद सभी प्रकार की सुख-सविधाओं से परिपूर्ण यह राज प्रासाद होता था। इसमें तोरण और वन्दन-मालाएं सदा लटकती रहती थीं। सुगन्धित धल और मनोरम पुष्पमालाएं इसके सौन्दर्य को निरन्तर वृद्धि करती रहती थीं। विमानछन्दक प्रासाद राजधानी के बाहर भी राजा सुन्दर और स्वास्थ्यप्रद स्थान पर अपने लिये प्रासादों का निर्माण कराता था। गुणसेन की राजधानी क्षितिप्रतिष्ठ नगर में थी, उसने बसन्तपर में अपने रहने के लिये विमान छन्दक नाम का प्रासाद निर्मित कराया था। यह वर्षा ऋतु की शोभा को धारण करने वाला था। यह भवन कालागुरु प्रादि के धमवितान के कारण मेघघटा छादित दुदिन का अनुकरण कर रहा था। इसमें रत्नहार विद्युत् के समान, मुक्तावलियां जलधारा के समान, चमर पंक्तियां लाका पंक्ति के समान, रंगीन वस्त्रों की शोभा इन्द्र धनुष के समान थी। गन्धोदक सुगन्धित जल से सिंचित भूमिभाग पर सुगन्धित पुष्प विकीर्ण रहते थे, जिन पर भौंरे गुंजार कर रहे थे। इसकी दीवालों में मूल्यवान मणियां जटित थीं। स्तम्भों पर स्वण जड़ा गया था, सन्दर गलियां और द्वार थे। एकस्तम्भ प्रासाद राजा कभी-कभी अपने लिये विचित्र प्रकार के भवन भी बनवाता था। हरिभद्र ने दशवकालिक की वृत्ति में बताया है कि राजा श्रेणिक ने अपने मंत्री अभयकुमार को एक स्तम्भ का प्रासाद निर्मित कराने की प्राज्ञा दी थी। अभयकुमार ने इस भवन का निर्माण देवी सहायता से कराया था। इसमें सर्वदा फलने-फूलने वाला दैवी उद्यान था। इस विचित्र प्रासाद का अपूर्व ही सौन्दर्य था'। अष्ट सहस्र स्तम्भ प्रासाद राजा जितशत्रु ने आठ हजार स्तम्भों का एक सभा भवन बनवाया था। उपदेशपद में बताया गया है कि बसन्तपुर के राजा जितशत्रु का मंत्री सत्य बड़ा ही बुद्धिमान और नीतिकशल था। इसने पाठ हजार स्तम्भ का एक मनोरम सभा भवन बनवाया था। इस भवन का प्रत्येक स्तम्भ अत्यन्त स्निग्ध और अनेक वर्णों का था। एक-एक स्तम्भ के ऊपर पाठ-पाठ हजार मानव प्राकृतियां बनायी गयी थीं। भवनोद्यान हरिभद्र ने महावन, उपवन, उद्यान और प्रमदवन इन चार प्रकार के उद्यानों का उल्लेख किया है । महावन से तात्पर्य जंगली अटवी से है, जहां सिंहादि पशु कोड़ा करते है। उपवन नगर के बाहर रहता था। बसन्त या मदन महोत्सव के अवसर पर नगर भर के लोग आनन्द क्रीड़ा के लिये इसमें जाते थे। उद्यान नगर के मध्य में सार्वजनिक पार्क के समान होता था। इसमें रागी व्यक्ति क्रीड़ा करके मन बहालने जाते थे। भवनोद्यान या प्रमदवन राजाओं के प्रासाद में ही रहता था। इसमें राजा और रानियां क्रीड़ा करती थीं। हरिभद्र ने बताया है कि पुष्पपाद , शोभापादप तथा लतामण्डप इस उद्यान में रहते थे। इन्होंने वर्णन करते हुए लिखा है--"गृह सारिकाओं से मुखरित द्राक्षालता मण्डप, नववर के समान लाल पत्तों से सुशोभित अशोकसमूह, चंचल सुन्दर हंसों द्वारा इधर-उधर १--स०, पृ० ४३ । २--वही, पृ० १५ । ३--८० हा०, पृ० ८१-८२ । ४--उप० गा० ६, पृ० २२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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