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________________ चाक्षुष बिम्ब- समराइच्च कहा में चाक्षुष बिम्बों की भरमार है । इन बिम्बों द्वारा भावों को अभिव्यंजना में बड़ी स्पष्टता आयी है । यथा- नहमऊ ' - - इस बिम्ब द्वारा नखों की उज्ज्वलता और किया है । नख- मयूख से हमारे नेत्रों के समक्ष स्वच्छता बिम्ब प्रस्तुत होता है । ३२७ मिच्छत्त तिमिर -- तिमिर सघन और कृष्णवर्ण का होता है, जब इसके कई परत एकत्र हो जाते हैं और इसकी सघनता बढ़ जाती हैं, तो रूपदर्शन का प्रभाव हो जाता है । मिथ्यात्व के इसी स्वरूप की अभिव्यंजना के निमित्त इस बिम्ब की योजना की गई है । वास्तव में मिथ्यात्व के सर्वागीण चित्र को मूर्तिमान रूप में प्रस्तुत करने के लिए यह बिम्ब बहुत ही सफल हैं । काल हट्ट -- यह बिम्ब प्रति स्वच्छ है और प्रतिक्षण नष्ट होने वाले समय का साकार चित्र उपस्थित करता है । कान्ति का चित्र उपस्थित और प्रकाश का एक स्पष्ट तम । लदलनीलं * - - खड्ग का रूपचित्र प्रस्तुत करने के लिए " तमालदलनीलं " बिम्ब का प्रयोग किया गया है । यहां यह भी स्मरणीय है कि यह बिम्ब मात्र रूप ही उपस्थित नहीं करता, बल्कि खड्ग की तीक्ष्णता और रक्त पिपासिता भी व्यंजित करता है । farara केसिया विवण्णमुही - - रात्रि का सर्वागीण चित्रण करने के लिए नायिका का बिम्ब प्रस्तुत किया है । यह वह नायिका है, जिसका पति स्वर्गस्थ हो गया है, अतः केशों के खुल जाने से वह विवर्णमुखी है, तथा अपने पति का श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के निमित्त जलदान के लिए जा रही है । रात्रि भी ब्राह्मवेला के श्रा जाने से चली जा रही है । इस बिम्ब योजना ने भावों का साकाररूप उपस्थित करने में बड़ी सहायता प्रदान की है । सरयजलहर -- ऋद्धि की नश्वरता और क्षणभंगुरता दिखलाने के लिए हरिभद्र शरत्कालीन मेघ, कामिनी कटाक्ष और विद्युत् इन तीन चाक्षुष बिम्बों का प्रयोग किया हैं । ये तीनों ही क्षणभंगुरता का भाव पूर्णतया चित्रित करते हैं । शरत्कालीन मेघ का दृश्य नभोमंडल में रम्यातिरम्य होता है, किन्तु कुछ ही क्षणों में यह दृश्य विलीन हो जाता है । कामिनी कटाक्ष भी बहुत चंचल रहता है, कहीं भी स्थिर नहीं होता । विद्युत् की चमक क्षण में अपना प्रकाश विकीर्ण कर लुप्त हो जाती है । १- स० पृ० ६३ ॥ २- - वही, पृ० १७० । २६० ॥ ४- २९३ | ३ - - वही, पृ० - वही, पृ० ५ -- वही, पृ० ६ -- वही, पृ० ३६५ ॥ ७- - वही, पृ० ४८ । २६५ ॥ नडपेच्छणय – संसार के स्वार्थ, संघर्ष एवं प्राकर्षण को बतलाने के लिए " नडपेच्छणय" द्वारा एक विचित्र सुख-दुःख मिश्रित बिम्ब प्रस्तुत किया है । दृश्य द्वारा संसार की अनुभूति को शब्दों में बांधने का प्रयास इलाघनीय है । रंगमंच के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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