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________________ २७३ समराइच्चकहा के नवम भव की कथा में बताया गया है कि कुमार समरादित्य जब अपनी दोनों रानियों को उपदेश देकर उनसे जीवनपर्यन्त के लिए विषय-सुख का त्याग करा देता है, उसी समय उनके माता-पिता को बहुत चिंता उत्पन्न होती है । आगे संयम द्वारा संतान उत्पत्ति की संभावना ही चली जाने से माता-पिता बेचैन हो जाते हैं । वंश परम्परा के समाप्त हो जाने का दृश्य उनकी आंखों के आगे उपस्थित हो जाता है । इस द्वन्द्व की स्थिति में सुदर्शना देवी प्रकट होती हैं । वह कहती है- "महाराज ! विषाद करना निरर्थक है । कुमार का मार्ग बहुत उत्तम है, उन्होंने विष त्यागकर अमृत ग्रहण किया हैं । संसार के विषयों का त्याग करना बड़ा भारी पुरुषार्थ है । आप धन्य हैं, जिन्हें इस प्रकार का पुत्र प्राप्त हुआ है । मैं आपके पुत्र के अनुराग के कारण अपना निवास छोड़कर इस भवन में रहती हूँ । आपलोग विषाद छोड़िये और पुत्र के कार्य का समर्थन कीजिए। इस कथानक रुढ़ि का प्रयोग हरिभद्र ने निम्न कार्यों की सिद्धि के लिए किया है :-- ( १ ) द्वन्द्व की समाप्ति कर प्रकाश का निर्माण । ( २ ) कथा को फलोन्मुख बनाना । (३) कथाप्रवाह में गति । ( ४ ) नायक का उत्कर्ष । ७- सत्य - परीक्षा "सत्र परीक्षा या सत्य किया" कथा अभिप्राय का प्रयोग दीर्घकाल से होता आ रहा है । हरिभद्र की कई कथाएं इसी अभिप्राय के आधार पर खड़ी हैं। किसी निश्चित प्रयोजन की सिद्धि के लिए किसी प्रकार का सत्यकथन अथवा उस सत्य की परीक्षा या पुष्टि के लिए किसी घटना का घटित हो जाना इस कथानक रूढ़ि के अन्तर्गत आता है । सुभद्रा के चरित्र पर लगे लांछन को दूर करने एवं उसकी सतीत्व-सिद्धि के लिए एक देव आता है और नगर के समस्त द्वारों को बन्द कर देता है । वह आकाशवाणी द्वारा लोगों को सूचना देता है कि इस नगर के द्वारों को पतिव्रता नारी चालनी में जल लाकर जल के छींटों द्वारा ही खोल सकती है। अन्य किसी उपाय से इसके द्वार नहीं खुलेंगे और आगे चलकर होता भी यही हैं। इस प्रकार इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग कथा में चमत्कार और कथारस में वृद्धि उत्पन्न करता है । ८ - - देवोपासना द्वारा सन्तान की प्राप्ति भारतवर्ष में सन्तान का महत्त्व अत्यधिक है। संतान के अभाव में जीवन नीरस माना जाता है । उत्तराधिकार का प्रश्न जीवन के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक है । अतः सन्तान की कामना यहां जीवन की भूख मानी गयी है । संतान प्राप्ति के अभाव में देवताओं की उपासना करते हैं और उनकी कृपा से संतान प्राप्त कर वंश-वृद्धि करते हैं । हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग समराइच्चकहा के चतुर्थ भव की कथा में किया है । वे श्रमण सार्थवाह और श्रीदेवी को पुत्र न होने से इन्होंने धनदेव यक्ष की उपासना की । उपासना के फलस्वरूप इन्हें पुत्र उत्पन्न हुआ। जो इस भव की कथा का नायक है । इस रूढ़ि की उपयोगिता कथा को चमत्कृत बनाने में है । १ - - सां० स०, पृ० ९११-९१२ । २- वही, पृ० २३५ । १८- २२ ए.० Jain Education International For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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