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________________ २५४ देखा और उसके रूप पर मुग्ध हो गयी । उसने उसकी पत्नी का रूप धारण किया और उस गाड़ी में आकर बैठ गयी । स्त्री को गाड़ी में बैठी देखकर उस युवक ने गाड़ी को आगे बढ़ाया । जब पानी पीकर उसकी पत्नी वापस लौटी तो गाड़ी को मागे जाते हुए देखकर वह रोने-कलपने लगी । उसने चिल्लाकर कहा -- "प्रियतम ! आप मुझे कहां छोड़ कर जा रहे हैं । में किसकी शरण में जाऊंगी । श्राप गाड़ी रोकिये ।" उन दोनों स्त्रियों की समान रूपाकृति देखकर उस व्यक्ति को महान् आश्चर्य हुआ । वह यह निश्चय करने में असमर्थ था कि उसकी वास्तविक पत्नी कौन है ? इसी तरह की घटना समराइच्चकहा के प्रष्टम भव की कथा में भी प्रायी है । एक दिन कौशलाधिपति को उनका घोड़ा भगाकर एक जंगल में ले गया। वहां मनोहरा नाम की यक्षिणी कुमार के अद्भुत सौन्दर्य को देखकर मुग्ध हो गयी और उसने कुमार से प्रेम याचना की, किन्तु कुमार ने स्वीकार नहीं किया । एक दिन कुमार की पत्नी सुसंगता का रूप बना कर कुमार के पलंग पर सो गयी तथा हाव-भाव और चेष्टाएँ भी सुसंगता के समान प्रकट की । जब वास्तविक सुसंगता शयन कक्ष में आयी तो पति की बगल में अपनी ही प्राकृति की अन्य स्त्री को सोते देख कर श्राश्चर्य चकित हो गयी। उसने पति से अनुरोध किया कि आप इस धोखेबाज स्त्री को हटा दीजिये, पर राजकुमार न वास्तविक पत्नी को ही नकली समझकर घर से निकाल दिया' । नवम् भव की कथा में घर में ही सुदर्शना नामक देवी के निवास करने की चर्चा आयी है । श्रतः स्पष्ट है कि हरिभद्र ने केवल समवशरण सभा की रचना ही देवों द्वारा नहीं करवायी है, बल्कि कथात्रों में रोचकता लाने के लिये प्रायः प्रतिमानवीय तत्वों की योजना भी की हं । १३ अन्धविश्वास- श्रादिमकाल से ही मानव समाज में अनेक प्रकार के विश्वास, ऐसे विश्वास जिनको तर्क और बुद्धि की तुला पर नहीं तौला जा सकता, मान्य और प्रचलित रहे हैं । इन sarfararai at प्रस्तित्व लोककथानों में पाया जाना अनिवार्य है । हरिभद्र की प्राकृत Ferri में निम्न अन्धविश्वास उपलब्ध होते हैं :-- (१) प्रकृति के चेतन तथा जड़ जगत से सम्बद्ध | ( २ ) मानव स्वभाव तथा मनुष्यकृत पदार्थों से सम्बद्ध । (३) देवगति -- विशेषतः व्यन्तर-पिशाच आदि से सम्बद्ध । (४) जादू-टोना, सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, मणि, तन्त्र, श्रौषधि प्रावि सम्बद्ध । इस श्रेणी में विद्याधरों द्वारा विद्यायों की सिद्धियां और उनकी विद्याओं का हंबी रूप में उपस्थित होना तथा प्रलौकिक चमत्कार दिखलाना भी शामिल है (५) शकुन-अपशकुन से सम्बद्ध । (६) रोग तथा मृत्यु से सम्बद्ध । (७) साधु-सन्यासियों से सम्बद्ध । १ -- उपचे सप्रब, ६३, ०६४ २० अ० भ० ० ८२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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