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________________ २१० (९) महाराज गुणसेन की शिरोवेदना के कारण राज परिवार की अस्त-व्यस्तता रहने से पारणा किये बिना ही अग्निशर्मा लौट गया। (११) द्वितीय बार शत्रु-आक्रमण के कारण सेना से राज-प्रासाद का मार्ग अवरुद्ध रहने से वह पारणा किये बिना लौट आया। (११) तृतीय बार भी महाराज गुणसेन के पुत्रोत्सव मनाने में व्यस्त रहने से वह पारणा किये बिना ही लौट गया। (१२) तीन बार आग्रहपूर्वक निमन्त्रण देने पर भी पारणा की व्यवस्था करने में महाराज गुणसेन के असफल रहने से अग्निशर्मा का बचपन की घटनाओं के कार्य-कारण संबंध जोड़ना और इस नये अध्याय को भी तंग करने का उपाय जानकर निदान बांधना। मरकर उसका विद्युत्कुमार देव होना। (१३) पारणा न हो सकने से निराश और दुःखी हो गुणसेन का राजधानी में लौट आना। (१४) मृतक को श्मशान भूमि की ओर ले जाते हुए देखने से कुमार का दीक्षा धारणा करना। (१५) तप करते हुए कुमार गुणसेन को देखकर निदान के कारण अग्निशर्मा के जीव विद्युत्कुमार का अग्नि प्रज्वलित कर उसे मार डालना। इस प्रकार मूल कथावस्तु की पन्द्रह कथानकों में कारण-कार्य की श्रृंखला है। फार्टर के अनुसार कथानक उसी को कहा जा सकेगा, जिसमें यह कारण-कार्य व्यापार पाया जाता है। प्रथम कथानक में अग्निशर्मा की कुरूपता और उसके शरीर का बेडौल होना ही उपहास्य का कारण है। इस कारण को पाकर ही कुमार गुणसेन उसे गधे पर सवार कराकर अपने साथियों के साथ उसका जुलूस निकालता है । द्वितीय कथानक में गुणसेन के द्वारा तंग किये जाने वाले कारण से ही अग्निशर्मा के विरक्ति रूपी कार्य की उत्पत्ति होती है और फलस्वरूप अग्निशर्मा साधु बन जाता है। तृतीय कथानक में महाराज पूर्णचन्द्र का वृद्ध होने पर तपश्चरण करने सन में जाने रूपी कारण से गुणसेन के राज्याभिषेक-कार्य की उत्पत्ति होती है । चतुर्थ कथानक में गुणसेन मनोविनोद के निमित्त वसन्तपुर के विमानछन्दक नाम के राज-प्रासाद में जाकर रहने लगता है। पांचवें कथानक में बाह याली में घोड़े पर सवार हो भ्रमण करने जाता है, भ्रमण करने से थककर--इतने कारण से, विश्राम रूपी कार्य की उत्पत्ति होती है । छटवें कथानक में निकट के पाश्रम से तापसकुमार आते है और उनके द्वारा सुपरितोष प्राश्रम का परिचय प्राप्त कर--कारण से, कुलपति के दर्शन रूप कार्य की उत्पत्ति होती है। सातवें कथानक में अग्निशर्मा के उग्र तपश्चरण से प्रभावित हो---कारण से अग्निशर्मा तपस्वी के पास पहुंचने रूप कार्य सम्पन्न होता है । 1-A plot is also a narrative of events, the emphasis falling on casuality. The king died and then the queen died” is a story. "The king died, and then the qucen died of grief" is a plot. The time-sequence is preserved, but the sense of casuality overshadows it. I plot cannot be told to a gaping audience of cave men or to a tyrannical Sultan or to their modern descendant the moviepublic. They can only be kept awake by' and then - and then-' they can only supply curiosity. But a plot demands intelligence and memory also. ASPECTS OF THE NOVEL: by E.M. Forster. pages 8:2-83. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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